बुधवार, 20 जनवरी 2016

दिनेश कुशभुवनपुरी की दो रचनाएँ

           गीतिका-एक
       आधार छंद-दिगपाल
मापनी-221 2122 221 2122
📙📙📙📙📙📙📙📙📙📙

ये जिंदगी हमारी,
हर पल हमें सिखाती।
जो हम भटक गए तो,
वह राह भी बताती॥
📚📚📚📚📚📚
चलती सदा हमारे,
आगे कदम बढ़ाकर।
जो हम थके कहीं भी,
तो हौसला बढ़ाती॥
📚📚📚📚📚📚
दो चार पग चले हम,
जो साथ जिंदगी के।
इक रंग उन पलों में,
हर बार है दिखाती॥
📚📚📚📚📚📚
आकाश की ऊँचाई,
पाताल की गहनता।
ये जिंदगी गिराकर,
फिर से हमें उठाती॥
📚📚📚📚📚📚
नाराज भी न होती,
ये जिंदगी  किसी से।
बस कर्म ही हमारा,
आ लौट कर सताती॥
📼📼📼📼📼📼📼

          गीतिका-दो
  आधार छंद- शक्ति छंद
मापनी- 122 122 122 12
📔📔📔📔📔📔📔📔📔

हमें प्यार से तुम सताया करो।
सदा स्वप्न हमको दिखाया करो॥
📚📚
कभी रूठ जाऊं अगर मैं प्रिये।
सदा प्रेम से तुम मनाया करो॥
📚📚
कठिन राह होती चली जा रही।
कदम दर कदम संग आया करो॥
📚📚
भरे खूब कंटक यहाँ राह में।
सुमन राह में तुम बिछाया करो॥
📚📚
कहीं खो न जाना किसी भीड़ में।
डगर में न कर तुम छुड़ाया करो॥
📚📚
लुटेरे खड़े हैं सभी मोड़ पर।
अकेले नगर में न जाया करो॥
📚📚
रहूँगा सदा संग दिल में प्रिये।
हमें प्यार से तुम बुलाया करो।
📡📡📡📡📡📡📡📡

दिनेश कुशभुवनपुरी
चाँदपुर-बरौंसा, सुलतानपुर(उ.प्र.)
चलभाष-07891771737

1 टिप्पणी: