नववर्ष का गीत
फिर समय की देहरी पर,
हर्ष के बादल घनेरे,
आ गया नव वर्ष अब तो
छन्द जैसा,गीत जैसा।
मन धवल,पुलकित हुई
कोमल-सहज सद्भावना,
है नवल आभास में
साहित्य की परिकल्पना।
पूर्णता है दिव्यता की
नव सृजन धारा बही,
शिल्प का अब भावना से
भाव है मनमीत जैसा।।
शक्ति में शंकर निहित हैं
कृष्ण-मन में राधिका,
पूर्ण जग में भावविह्वल
वर्ण-व्यञ्जन-वीथिका।
शब्द पुष्पित पल्लवित हैं
अर्थ की अनुगूँज है,
लग रहा जीवन्त जीवन
काव्य में नवगीत जैसा।।
अवनीश त्रिपाठी
गरएं,लम्भुआ,सुलतानपुर
उत्तर प्रदेश
9451554243
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