कबीर के बहाने इस नवगीत में रूपम जी ने समकालीनता का ध्यान रखा है।वर्तमान की विद्रूपता को प्रतीक के माध्यम से प्रकट करता हुआ विशेष नवगीत.....
देखो क्या कुछ रोज हो रहा
ऐ कबीर कुछ बोलो ना
मगहर भी काशी की बातें करता है
दम्भ धर्म का कोना-कोना भरता है
मैली अब
हो गई चदरिया धो लो ना
सच कहने पर लगी हुई पाबंदी है
मन में विश्वासों की फैली मंदी है
मन के अंदर
कुछ तो हिम्मत घोलो ना
ढाई आखर वाली बोली मैली है
अब फकीर की टूटी खोली मैली है
दोहों में फिर
राज सभी का खोलो ना
✍️ रूपम झा
Fine.
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