युग चारण होना था जिनको
वह अब सत्ता का चारण है।
पद्म-पत्र की इच्छाओं ने
कबसे ही चुप्पी साधी है।
दोनों कान मूँद कर अपनी
आँखों पर पट्टी बाँधी है।
जो पीड़ा की औषधि बनता,
वह ही अब दुख का कारण है।
दमित कामना व्यक्त हो रही
है शृंगारिक छंद समर्पित,
पाक, चीन को फाँस रहे हैं
ओज-शौर्य के फंदों में नित;
अक्षर-अक्षर चालीसा है,
अधरों पर व्रत का पारण है।
मंचों पर शोभायमान हैं
पैरोडी सम्राट विदूषक,
दो-अर्थी चुटकुले सुनाकर
शब्द कुतरते अतिक्रिय मूषक,
इस युग के तुलसी,कबीर का;
उफ़!खल रहा मौन धारण है।
✍️मनीष कुमार झा
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