मंगलवार, 21 जून 2016

सन्ध्या सिंह जी का हृद्य गीत

' बरखा ‘
☔☔
बहक बहक कर आज सम्भाला
बडे दिनों के बाद
खुली गगन में इक मधुशाला
बड़े दिनों के बाद
☁☁
सड़कों पर बूंदों की छम छम
घुंघरू सी झंकार हुई
भीग भीग कर टहनी झूमी
बरखा ज्यों त्यौहार हुई

आज भरा पोखर का प्याला
बड़े दिनों के बाद
खुली गगन में इक मधुशाला
बड़े दिनों के बाद
🌂🌂
आज पुरानी रस्म तोड़ कर
लहर किनारे लांघ रही
मिट्टी ने पानी में घुल कर
मन की सारी बात कही

दरिया आज हुआ मतवाला
बड़े दिनों के बाद
खुली गगन में इक मधुशाला
बड़े दिनों के बाद
🌈🌈
पत्तों को चढ़ गयी खुमारी 
झोंकों ने पहचान लिया
घूँट-घूँट ये शुद्ध सोमरस
पेड़ों ने रसपान किया

छलक उठी कुदरत की हाला
बड़े दिनों के बाद
खुली गगन में इक मधुशाला
बड़े दिनों के बाद
💧💧
©® संध्या सिंह
       लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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