बुधवार, 20 जनवरी 2016

भरत गर्वा की दो ग़ज़लें

            【ग़ज़ल-एक
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दर्द थोड़ा, थोड़े आँसू, कुछ गिले हैं और भी,
बाद तेरे ज़िन्दगी ने गम दिए हैं और भी।।
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तू गया तो यूँ लगा की ज़िन्दगी ही रुक गई,
पर हकीकत है यही की हम चले हैं और भी।।
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जब मुझे दिखला न पाया अक्स मेरा साफ तू,
क्यूँ जहन में ये न आया आइने हैं और भी ???
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इक तरफ तो तू जुदा हैं इक तरफ खुद से ही मैं,
मुझसे मेरी ज़िन्दगी के फासले हैं और भी।।
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मैं पतंगा तू शमा थी और मिलन भी ना हुआ,
फिर बिछड़ के क्यूँ मेरे ये पर जले हैं और भी।।
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दिल में जिसने भी बसाया पा गया तुझको खुदा,
वरना तेरी ओर बढ़ते काफिले हैं और भी।।
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मर गया वो गर्व लेकिन लौट कर फिर आएगा,
इश्क बाकी है जहाँ में, दिलजले हैं और भी।।
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            📑 【ग़ज़ल-दो】📑
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मुद्दतों के बाद तुमको अब सदा भी दूँ तो क्या ?
दरमियां जो कुछ नहीं अब वास्ता भी दूँ तो क्या ?
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बाद जाने के तुम्हारे ज़िन्दगी भी रुक गई,
अब बताओ तुम इसे मैं रास्ता भी दूँ तो क्या ?
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ज़िन्दगी की छत खुली है ढक न पाया कोई भी,
खुद को गम की बारिशों में आसरा भी दूँ तो क्या ?
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ज़िन्दगी की कश्तियों को डूबने का शौक है,
बारहा इनको नये मैं नाखुदा भी दूँ तो क्या ?
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मैं रुका था उम्र भर बस ज़िन्दगी ठहरी नहीं,
पर न आया लौट कर वो अब सदा भी दूँ तो क्या ?
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उम्र भर का दर्द दे के बेरुखी कहने लगी,
क्या सताऊ मैं तुम्हें अब फासला भी दूँ तो क्या ?
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दास्ताँ-ए-बेवफाई लिख के पूछे गर्व अब,
बेवफा को इससे अच्छा आईना भी दूँ तो क्या ?
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