सुनहरी सुनहरी,
सुबह हो,
रही है।
*
कहीं शंख ध्वनियाँ,
कहीं पर ,
अज़ानें।
चली शीश श्रद्धा,
चरण में,
झुकाने ।
प्रभा तारकों
की स्वतःखो
रही है।
*
सुनहरी सुनहरी,
सुबह हो,
रही है।
*
प्रभाती सुनाते,
फिरें दल,
खगों के।
चतुर्दिक सुगंधित,
हवाओं,
के झोंके।
नई आस मन में,
उषा बो,
रही है।
*
सुनहरी सुनहरी,
सुबह हो,
रही है।
*
ऋचा कर्म की ,
कोकिला ,
बाँचती है।
लहकती फसल,
खेत में ,
नाचती है ।
कली ओस,
में भींज मुँह धो ,
रही है।
*
सुनहरी सुनहरी,
सुबह हो ,
रही है।
*
मनोज जैन
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