किलकारी गूँजीं जिस घर में,
देखो कितना हुवा पराया
तुलसी थी मै जिस अँगना की,
साया तक उसनें बिसराया।।
दादा दादी भइया भाभी
गुडिया उनकी मै बिन चाभी
माँ पापा का जीवन धन थी
साया आखिर होता साया
तुलसी थी मै जिस अँगना की,
साया तक उसनें बिसराया।।
नीम खडा जो पार्श्व भाग में
बाँहो में मै झूली जिसके
मै क्या छूटी छोडी आशा
देखो असमय ही मुरझाया
तुलसी थी मै जिस अँगना की,,
साया तक उसनें बिसराया।।
घर तेरा असतित्व कभी थी
भीति ओसारे रची बसी थी
तूनें भी सत्यार्थ कर दिया
बेटों से केवल सरमाया
तुलसी थी मै जिस अँगना की,
साया तक उसनें बिसराया।।
चिर परिचित पर लगे अपरिचित
सब पहले सा लगे व्यवस्थित
जग तेरी यह रीति निराली
बेटी तो घन-धान्य पराया
तुलसी थी मै जिस अँगना की,
साया तक उसनें बिसराया।।
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