रविवार, 17 जनवरी 2016

कन्हैया तिवारी का परिचय एवं ग़ज़लें

नाम-कन्हैया लखीमपुरी(कन्हैया तिवारी)
पिता-स्व0श्री सरस्वती प्रसाद तिवारी
माता-श्रीमती शान्ति तिवारी
शिक्षा-स्नातक छत्रपति शाहूजी महराज यूनिवर्सिटी कानपुर
ग़ज़ल और गीत का निरन्तर लेखन एवं प्रकाशन।साझा संकलनों में रचनाएँ संकलित।मीठी सी तल्खियाँ एवं कवितालोक प्रथम उद्भास् में रचनाएँ प्रकाशित।
कवि सम्मेलनों में भी उत्कृष्ट काव्यात्मक सहभागिता।
पता-
ग्राम -सेमरिया,पो॰बदालीपुर
जनपद-लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश
पिन-261502
फोन -09984637982,08354000410

ग़ज़ल-1

बुरे हालात मेँ अक्सर,कदम जब लड़खड़ाते हैँ,
तो घर की चौखटोँ से हम जियादा चोट खाते हैँ।

जमीँ से आसमां तक जो,कभी परवाज भरते थे,
परिँदे बेबसी मेँ आज केवल फड़फड़ाते हैँ।

हुनर जिनको सिखाया था कदम रखने-रखाने का,
सयाने हो गये इतने वही चलना सिखाते हैँ।

बड़े अरमान से पाला,बुढ़ापे की समझ लाठी,
कलेजे के वही टुकड़े मुझे खंजर दिखाते हैँ।

ख़िज़ां आयी शज़र पे तो परिँदे उड़ गये सारे,
बहाना कर रहे यारोँ कि पत्ते खड़खड़ाते हैँ।

इबादत मेँ दुवा मरने की मेरे रोज करते थे,
दिखावे को जनाजे पर वही आँसू बहाते हैँ।

ग़ज़ल-2

दिल तो करता है बहुत पर ऐसी जुर्रत क्या करूँ,
जो तिज़ारत करता है उससे मुहब्बत क्या करूँ?

गम हमारे सुनके दुनिया मुस्करायेगी महज़,
इसलिये हूँ मुस्कराता रोनी सूरत क्या करूँ?

जानता हूँ लोग मुझको तोड़ डालेगेँ मगर,
आइना हूँ सच कहूँगा अपनी आदत क्या करूँ?

एक दिन आनी ही है जाना पड़ेगा साथ मे,
इसलिए अब मौत से मै लेके मुहलत क्या करूँ?

ख़ाक होना ही पड़ेगा एक दिन आखिर मे तो,
बोलिये इस दिल मेँ फिर रखकर अदावत क्या करूँ?

जिससे अज़दादोँ की पगड़ी मैली होने का है डर,
ठोकरोँ पे रखता हूँ मै ऐसी शोहरत क्या करूँ।

जब भी उनके हुस्न की तारीफ़ की हमने कभी,
मुस्करा नज़रे झुकाकर बोले वो धत,क्या करूँ?

ग़ज़ल-3

ये सच है जान को खतरा नही है,
मगर पिँजरे मे वो जिँदा नही है।

वो मुद्दा है मगर उलझा नही है,
तभी तो आज तक उछला नही है।

लगी है जंग उसके बर्तनोँ मे,
मगर ईमान पर धब्बा नही है।

जवां बेटी का बूढ़ा बाप मुफ़लिस,
कई रातेँ हुई सोया नही है।

ख़िज़ां का दौर आया है शज़र पे,
ये लगता है मगर बूढ़ा नही है।

दीवारेँ हैँ भले मिट्टी की उसकी,
के उसका हौसला कच्चा नही है।

वो लगती और ज़्यादा खूबसूरत,
कमी बस नाक पर गुस्सा नही है।

कहो गर शे'र, पहुँचे उसके दिल तक,
पढ़ा जो एक भी दर्ज़ा नही है।

1 टिप्पणी: