रविवार, 17 जनवरी 2016

सुनन्दा जैन अना की रचना

**  परिचय  **
नाम   - सुनंदा जैन 'अना'
जन्मतिथि - 17 जनवरी
स्थायी पता- जबलपुर मध्य प्रदेश
वर्त्तमान पता- मुंबई महाराष्ट्र
शैक्षणिक योग्यता- बीएससी, पी जी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म!!
पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन!!
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घूम रही धुरी पर
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घूम रही धुरी पर धरा
पथिक जैसे मतवाला
अम्बर लड़ता अंधकार से
सूरज को बना ज्वाला
तुझमे मुझमें व्याप्त है
एक संवेदना बनकर
जगा लो उसको अंतर में
कहता जग जिसे रखवाला

सोच बदलती निमिष मात्र में
मन जैसे पर कच्चा प्याला
भर लो उसमें नूतन विचार
तोड़ दो कुंठा का जाला
प्रवाह में प्राप्त है
जीवन का मूल सार
तुम सृजनकर्ता हो स्वबुद्धि के
बना लो क़लम या बना लो भाला

उषा ले किरणों की थाती
साँझ लिए दिए की ज्वाला
निशा की अब पराजय
तम ने घूंघट निकाला
मन के कोनों में व्याप्त है
यामिनी जो प्रखर
कम्पित लौ पे हाथ लगा लो
जग से हटे घोर अंधियाला

निश्चित मूल्यों को कर संचित
अनिश्चित को दे भाव निकाला
एक प्रकाश किरण जैसे
तन से देती परछाई निकाला
पतन हो रहा जो हर पल
निश्चितनता का ठौर ठहर
कर उत्थान अस्तित्व का
जीवन में जोड़ यह सम्बन्ध निराला

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