रविवार, 17 जनवरी 2016

कुमुद चौबीसा की गीतिका

               गीतिका--"आईना"

नाजुक दिल में भरा समुन्दर नहीं दिखाता आईना
कितने गम है दिल के अक्सर नहीं दिखाता आईना

काला गौरा रंग जिस्म का चीज़ यही दिखलाता है
छुपे दिलों में तीखे खंजर नहीं दिखाता आईना

बोझ समझकर फेका माँ ने अपनी ही परछाई को
घावों पर घावों की ठोकर नहीं दिखाता आईना

देख जुर्म की कुछ न बोले कैसे कैसे लोग यहाँ
बनी है कितनी आँखें पत्थर नहीं दिखाता आईना

चेहरे पे चेहरे है कितने मुश्किल ये पहचान हुई
दुश्मन कौन ,कौन है रहबर नहीं दिखाता आईना

एक चाँद का साथ मिला पर बादल उससे लिपट गया
अंधियारे में फिर डूबा घर नहीं दिखाता आईना

बगदादी की दहशत देखो फैल रही है दुनियाँ में
"कुमुद " तुम्हारी आखों का डर नहीं दिखाता आईना

कुमुद चौबीसा "शारदा"

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