सोमवार, 8 अगस्त 2016

नज़र द्विवेदी की उम्दा ग़ज़ल

       काव्य शिल्पी फिलब्दीह-9
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अपनी ग़र्दिश के सुबूतों को मिटाता कौन है ।
आज के हालात में अब मुस्कुराता कौन है ।।
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वो तो तेरी याद ने ही मुझको ग़ाफ़िल कर रखा ।
वरना अपने आप को भी भूल जाता कौन है ।।
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पाप अंदर का हमारे तोड़ देता बारहा ।
हमको लगता है हमें इतना डराता कौन है ।।
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किरकिरी बनता हमारी आंख का जो रात भर ।
ख़्वाब में आ कर हमें इतना सताता कौन है ।।
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फ़िक्र मुझको कुछ नहीं, हो राहज़न या राहबर ,
हाथ खाली हो तो उसके पास आता कौन है ।।
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सामने रखता है हरदम वो हमारी ग़लतियां ।
आईने सा और दिल इतना दुखाता कौन है ।।
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बांध रक्खा दोस्तों ने प्रीत की ज़ंजीर से ।
बज़्म ऐसी छोड़ कर अब यार जाता कौन है ।।
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इक "नज़र" मासूम सी वो आंख की पाकीज़गी ।
वह मुक़द्दस मुस्कुराहट भूल पाता कौन है ।।
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( मुक़द्दस = पवित्र )
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नज़र द्विवेदी

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