सोमवार, 29 अगस्त 2016

शिखर अवस्थी का देश के प्रति सकारात्मक सोच का गीत

मैं भारत में प्रेमवाद का वास कराने आया हूँ।
उग्रवाद आतंकवाद का नाश कराने आया हूँ।

मैं भी लिख सकता हूँ शबनम जैसी पलकों की आशा को,
मैं भी लिख सकता हूँ प्रियतम के मन की अभिलाषा को।
लेकिन जब तक भारत की पीड़ा को लोग बढ़ाएँगे,
तब तक निडर लिखूंगा केवल अंगारों की भाषा को॥
जो अंगारों के प्यासे, उनकी प्यास मिटाने आया हूँ।
मैं भारत में.........................॥🇮🇳

अब तो चारों ओर कहर वालों का आसन दिखता है,
मंत्री नेता और पुलिसवालों का शासन दिखता है।
ये करते बदनाम व्यवस्था मिलकर शासन सत्ता की,
जिनके हाथों में होती है पर्ची वेतन भत्ता की॥
मैं इनको निज संविधान की राह दिखाने आया हूँ।
मैं भारत.............................॥🇮🇳

कश्मीरी घाटी के आगे कुरुक्षेत्र शर्मिंदा क्यों?
करता जो नित हत्याएं निर्दोषों की वह जिंदा क्यों?
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े यदि तो आजादी है,
गद्दारों के शीश काटने वाला भी अपराधी है॥
मैं संसद के संविधान पर दाग लगाने आया हूँ।
मैं भारत.............................॥🇮🇳

फाँसी के फंदों को भी थी शर्म नही आयी पल भर,
भगत सिंह जैसे लोगों ने जब चूमे फंदे चढ़कर।
क्रांतिकारियों ने मिलकर कैसा इतिहास बना डाला,
लेकिन अब तो राजनीति ने सब परिहास बना डाला॥
इन्हीं प्रमाणित बातों से उत्साह बढ़ाने आया हूँ।
मैं भारत.............................॥🇮🇳
 
🇮🇳शिखर अवस्थी, सीतापुर🇮🇳✍

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