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याद आई तेरी सुर्ख मन्ज़र हुआ,
हमने लिख दी ग़ज़ल दिल सुख़नवर हुआ!
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जिस घड़ी जुगनुओ ने चमक छोड़ दी,
आसमां रो पड़ा चाँद बेघर हुआ!
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मेरे दिल पर हुआ तेरी दिल पर हुआ,
मर्ज-ए-उल्फ़त मेरी जान क्योँकर हुआ!
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उसके अरमान बढ़ते रहे उम्र भर,
आदमी ख्वाहिशों का कनसतर हुआ!
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मेरा दुश्मन भी अय्यार है दोस्तों,
सामने पड़ गया तो बिरादर हुआ!
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ये जो बादल घनेपन पे मगरूर है,
तेरी आँखों का काजल चुराकर हुआ!
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रात कैसे कटी क्या कहें दोस्तों,
नींद चादर हुई, ख़्वाब बिस्तर हुआ!
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कैसे मक़सद को बदला गया देखिये,
कत्ल करने को अल्लाहो-अकबर हुआ!
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प्यास ने इस क़दर हमको रुस्वा किया,
आँख पानी हुई दिल समंदर हुआ!
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चंद गज ही सही, मिल्कियत मिल गई,
बाद मरने के मैं भी सिकंदर हुआ!
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काव्य शिल्पी फिलब्दीह-8
अब्बास क़मर
जौनपुर उत्तर प्रदेश
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