सोमवार, 8 अगस्त 2016

दीपक कुमार नगाइच रौशन की एक बेहतरीन ग़ज़ल

काव्य शिल्पी समूह की फिलब्दीह-9
         ::: आज की मश्क़ :::
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फ़िक़्र है इस बात की उनको कि अपना कौन है ?
और  हम  ये  सोचते  रहते  पराया  कौन  है ?
🐚🐚
सबकी  चाहत है  कि वो छू लें अभी  ऊँचाइयां,
सिलसिले कोशिश के लेकिन ज़ारी रखता कौन है.
🌿🌿
शाम से ही खिल उठे हैं बामो-दर इस बज़्म के,
चिलमनों की ओट से फिर मुस्कुराया कौन है.
🍂🍂
सब  तो  अपने  हैं  यहाँ  पर  ग़ैर कोई भी नहीं,
कैसे कह दूं मैं सरे महफ़िल कि अच्छा कौन है.
🍁🍁
कौन है जो मुफ़लिसों को दे रहा है हौसला,
अश्क उनके पोंछने आता फ़रिश्ता कौन है ?
🌲🌲
दीदा-ए-तर  से  किसे  देखूं  किसे  पहचान लूं,
दोस्त है वो या है दुश्मन किसका साया कौन है ?
🍀🍀
बे-सबब तो दिल की धड़कन तेज़ होने से रही,
देख ऐ दिल ! तेरे दर पर आज आया कौन है ?
🌴🌴
क़ैद है किस्सों में अब तो इश्क की वो दास्ताँ,
कौन फिर मजनूं हुआ है और लैला कौन है ?
🌾🌾
कौन है जिसने किया *रोशन* मेरे जज़्बात को,
दिल में उल्फ़त के चरागों को जलाता कौन है ?
🌻🌸

दीपक कुमार नगाइच 'रोशन'
उदयपुर, राजस्थान

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