काव्य शिल्पी फ़िलबदीह-7
🌳🌲
कोशिशें हैं कि कुछ सुधर जाऊँ
राय दो कौनसी डगर जाऊँ
🌱🌷
जेब खाली है क्यों करूँ वादा
क्या पता कब कहाँ मुकर जाऊँ
🌼🌻
सुन जमाने न हार मानूँगा
चाहे मैं टूट कर बिखर जाऊँ
💐🌸
कल मुझे देख मुस्कुराई वह
आज उसके लिए संवर जाऊँ
🌹💮
जिंदगी तुझसे भी मिलूँगा पर
मैं दुखो से तो कुछ उबर जाऊँ
🌺🌴
मैं उबरने की कर रहा कोशिश
घाव पूछे मुझे , उभर जाऊँ ?
🍂🍁
कह रही थी कली मुझे कल ये
छोड़ काँटों को मैं किधर जाऊँ
🌱🌸
हुस्न ! तू जाल दूर रख अपना
सब्र कर और कुछ निखर जाऊँ
🐝🐡
चाहिए और क्या मुझे मित्रो
मान मिलता बहुत जिधर जाऊँ
🐚🐌
सब जगह एक सी परेशानी
ये नगर छोड़ किस नगर जाऊँ
🍂💐
याद करते रहें सदा मानव
काम ऐसा अमूल्य कर जाऊँ
मनोज मानव
बिजनौर उत्तर प्रदेश
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