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ज़ीस्त में तेरी बता फिर क्या मज़ा रह जाएगा ।
तू अगर इक शख़्स को ही सोचता रह जाएगा ।।
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मंज़िलें पा कर मुसाफ़िर भूल जाएंगे उसे ।
शाम होते ही अकेला रास्ता रह जाएगा ।।
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दफ़्अतन तर्क़े तअल्लुक़ का असर होगा ज़रूर ।
उम्र भर सीने में इक कांटा चुभा रह जाएगा ।।
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पढ़ न पाये आप जो होंठों की ये ख़ामोशियां ।
अनकहे लफ़्ज़ों का मतलब गुमशुदा रह जाएगा ।।
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भूल जाएगा तू इक दिन अपने होने का सबूत ।
दूसरों के ऐब ही गर देखता रह जाएगा ।।
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मुद्दतों लिखता रहा जिसको लहू से, अश्क से ।
क्या ख़बर थी ख़त वो मेरा अनपढ़ा रह जाएगा ।।
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बादशाहत इन रिवाज़ों की डराती है मुझे ।
क़ैद इनमें ही रहा तो क्या नया रह जाएगा ।।
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दफ़्न तू ने कर दिया बेशक "नज़र" के जिस्म को ।
खाक बन कर हश्र तक वह फैलता रह जाएगा ।।
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Nazar Dwivedi
नज़र द्विवेदी
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