गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

अनुभव गुप्ता की दो ग़ज़लें

                     【एक】

चंद लम्हों का जो था वो हमसफ़र अच्छा लगा
जो भी था जैसा भी था हमको मग़र अच्छा लगा

आपके आने से ज़िंदा हो गई थीं धड़कनें
नींद में कल रात ख़्वाबों का सफ़र अच्छा लगा

अपनी मंज़िल तक न हम पहुँचे ये किस्मत थी मग़र
साथ जिसके हम चले वो राहबर अच्छा लगा

रास्ते में जब मिला शरमा के नज़रें फेर लीं
वो हमारे हाल से यूँ बाख़बर अच्छा लगा

आज हम निकले थे घर से कुछ नयेपन के लिए
लौटकर जब आये तो अपना ही घर अच्छा लगा

बेबसी में एक तिनके का सहारा ही बहुत
धूप जब आई तो रस्ते का शजर अच्छा लगा

उसका मुझसे रूठ जाना, फिर मनाने पर मेरे
बेसबब आँसू बहाने का हुनर अच्छा लगा

मुद्दतों के बाद उसने हाल पूछा है मेरा
आईने में आज खुद को देखकर अच्छा लगा

        
                  【दो】

सर मेरे फिर कोई नए इलज़ाम के लिए
फिरते हैं कितने लोग इसी काम के लिए

साँसों में जिसकी खुशबू महकती है रात दिन
दिल बेकरार है उसी गुलफ़ाम के लिए

बेकाबू हो रही हैं अभी से ही धड़कनें
आने को कह गया है वो कल शाम के लिए

बजने लगी है बाँसुरी जमुना के घाट पर
बेचैन मीरा फिर हुई घनश्याम के लिए

रहते हैं मुल्क़ के सभी हालात ज्यों के त्यों
सरकारें आती जाती हैं बस नाम के लिए

इन मसनदों की इनको न तौफ़ीक़ दे खुदा
बैठे हैं कुर्सियों पे जो आराम के लिए

कुछ लोग भेजते हैं कबूतर के जरिये ख़त
मैंने चुना हवाओं को पैगाम के लिए

तुम आ गए हो और फज़ा भी है खुशगवार
क्या चाहिए अब और हसीं शाम के लिए

अनुभव गुप्ता

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