शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

संजीव मिश्र का सुकोमल गीत

       सुकोमल अधर
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"धर दिये मेरे मस्तक प्रिये,
     पंखुरी से सुकोमल अधर।
मुझको आभास ऐसा हुआ,
    रात जैसे गई हो ठहर॥

कल्पनाएँ जो मन में सजीं,
  आज साकार होने लगीं।
कंचनी देह को देखकर,
  उंगलियां धैर्य खोने लगीं।

स्वर्ग को छोड़ कर अप्सरा,
   ज्यों धरा पर हो आयी उतर॥

क्यों रहे द्वंद मन में प्रिये,
  जब लगी प्रीत की हो लगन।
क्यों हो संकोच मन में लिये,
प्रेम पथ पर धरे जब चरन।

प्रेम की इस नदी में हमें,
    जाने कितने मिलेंगे भंवर॥

एक पल को हटी जो चुनर,
   रूप की धूप सी खिल गयी।
मन भ्रमर सा हुआ बावरा,
  जैसे कोई कली मिल गयी।

एक पल देखने को तुम्हें,
  रात भूली  सुबह की डगर॥"

   गीत- संजीव मिश्रा
   पीलीभीत,उत्तर प्रदेश,

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