बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

मनोज मानव की ग़ज़ल

आज हर हाल में मजबूर नजर आता है
क्यों फटेहाल ही मजदूर नजर आता है।

घाव ने साथ निभाया है हमारा इतना
आज खुद प्यार भी नासूर नजर आता है।

जो कभी दावा किया करता था परछाई का
वह हमें आज खड़ा दूर नजर आता है।

रोटियाँ खूब बना करती थी साँझी जिसमे
आज वह हमको न तन्दूर नजर आता है।

मान्यता भूल गए या है असर पश्चिम का
जो नहीं मांग में सिन्दूर नजर आता है।

सीख मानव ने लिया आज हुनर जीने का
बाँटता प्यार जो भरपूर नजर आता है।

             -----(मनोज मानव)----

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