रविवार, 14 फ़रवरी 2016

मनमोहन सिंह दर्द लखनवी की ग़ज़लें

                ग़ज़ल-एक

ये बाते प्यार की है या मेरी दीवानगी की है
मगर क्यों लोग कहते है मेरी आवारगी की है

मोहब्बत कैसे करते हम जो मैखाने नहीं होते
तेरी आँखों में जानम डूब कर ही आशिकी की है

हुए मसरूर हम पीकर मये अंगूर को लेकिन
जो छलके आँख से तो ख़ाक हमने मैकशी की है

जो रौशन है वफ़ा का एक दीपक आस्तानो में
खुदा का शुक्र है हमने उसी से दोस्ती की है

यहाँ पर अब अंधेरो से नहीं है वास्ता कोई
जो आके इस हसीं महफ़िल में उसने रौशनी की है

ग़ज़ल हमसे तो कोई अब मुकम्मल हो नहीं पाती
मगर वो कह रहें है हमने उम्दा शायरी की है

                ग़ज़ल-दो

तेरी नज़रों में उल्फत का असर ढूंढते है
हम ऐसा मोहब्बत का नगर ढूंढते है

रूह जो शाद कर दिल को जो पुरनूर करे
प्रेम सिंधु मे कोई डूबी नज़र ढूंढते है

फूल से लगने लगें जमाने भर के सितम ।
तेरी रहमत का जो साया दे शजर ढूंढते है ।

मन की आँख से जो मिल जाए मुझे भी दर्शन ।
सत्य , शाश्वत ,  मुर्शिद की डगर ढूंढते है ।

नूर ही नूर जहां रौशनी हर सम्त मिले
दिल के राही तो तौफीके-सफ़र ढूंढते है ।

कॉपीराईट मनमोहन सिंह दर्द लखनवी
               लखनऊ उत्तर प्रदेश

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