मंगलवार, 22 जून 2021

नवगीत-सिद्धार्थ होना चाहता हूँ by राहुल शिवाय

अंतर्यात्रा के दौरान हो रही मानसिक उथल पुथल से ऐसे गीत सृज जाते हैं।राहुल शिवाय के गीत संग्रह 'मौन भी अपराध है' के अधिकांश गीत गीत संग्रह के शीर्षक को जस्टिफाई करते हुए उसका प्रबल उत्तर देते हुए प्रतीत होते हैं।राहुल एक सम्वेदनशील और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं।उनकी जनपक्षधरता उनकी सजगता का प्रमाण है।उनकी उम्र को देखते हुए उनकी साहित्यिक गम्भीरता उन्हें उनके समकालीनों से अलग करती है।उनके संग्रहों का निरन्तर प्रकाशित होना, नवगीत,दोहों या किसी विषय विशेष पर लगातर कई रचनाकारों को लेकर उस विधा के समग्र अवदान को रेखांकित करने हेतु अनेक संकलन निकालना उनका छन्दोबद्ध कविता के लिए किया गया अमूल्य प्रयास है।
आज 'मौन भी अपराध है' के एक बार दोबारा सारे गीत पढ़े।हर दृष्टि से सारे गीत बहुत उत्कृष्ट हैं।नवगीतों के संकलनों की शृंखला में इस नयी कृति का बहुत बहुत स्वागत.
-सोनरूपा विशाल

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बुद्ध बनना है सरल
सिद्धार्थ होना चाहता हूँ

हाँ वही जिसको
विहग की पीर ने
व्याकुल किया था
हाँ वही जिसको
अचल गम्भीर ने
व्याकुल किया था
मैं उसी सिद्धार्थ का
संकल्प बनकर,
इस समय का
बोध जो मुझमें जगा दे
स्वार्थ होना चाहता हूँ

है बड़ा आसान 
सत को जानकर,
सत को बताना
पर कठिन है
सत कहाँ?
यह खोजने में मन लगाना
हैं बहुत से अर्थ मेरे,
पर सभी को
सार देकर
इस भटकते अर्थ का
परमार्थ होना चाहता हूँ 

क्या जगत है,
क्या जगत में,
अर्थ है या भेद है यह
एक जल
वह भाप है,वह बर्फ है
या स्वेद है वह 
निज ह्रदय के गर्भ में
मैं दो करों को
जोड़ कबसे
बोधि तरु-सा कृष्ण पाकर
पार्थ होना चाहता हूँ 

राहुल शिवाय

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