आज पीर भी हुई पराई
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मन पीड़ा से तड़प रहा है
देख स्वयं की तन्हाई !
देख मुझे ये विस्मय होता
नियति नटी की निठुराई !
मन पीड़ा ............
दुखिया मन को विरहा के क्षण
पीड़ा से तड़पाते हैं !
दर्द हमारे आँसू बनकर
धरती पर गिर जाते हैं !
शब्दों में अभिव्यक्ति करें क्या
अपने मन की कठिनाई !
मन पीड़ा ............
यादों का हर इक पल मुझको
सूनेपन में समझाता !
फूल शूल सम चुभने लगते
अपना कोई जब जाता !
अब तक थे वो मेरे अपने
आज पीर भी हुई पराई !
मन पीड़ा ..............
शोकाकुल था हृदय हमारा
तभी किसी ने कुछ गाया !
मधुर भ्रान्ति की सुस्मृतियों में
मानस मेरा लहराया !
गीत में इतना दर्द भरा था
जैसे मुझको मिली दवाई !
मन पीड़ा ................
माँ हमको दे दो वरदान
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तिमिर मिटे भर जाए ज्ञान !
माँ हमको दे दो वरदान !!
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पावन नेह हृदय में भरकर
द्वेष -भाव कल्मष को हरकर
ज्ञान-ज्योति को धारण कर हम
करें सभी का बस सम्मान !!
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तिमिर मिटे भर जाए ज्ञान !
माँ हमको दे दो वरदान !!
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प्रगति पंथ पर बढ़ते जाएँ
स्वदेश प्रेम की ज्योति जलाएँ
निडर साहसी हैं सपूत हम
हमको हो गौरव का भान !!
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तिमिर मिटे भर जाए ज्ञान !
माँ हमको दे दो वरदान !!
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बाधाओं से क्यों घबराएँ
क्यों दुख में हम धैर्य गँवाएँ
कितनी भी हो कठिन समस्या
आओ मिलकर करें निदान !!
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तिमिर मिटे भर जाए ज्ञान !
माँ हमको दे दो वरदान !!
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पारसनाथ श्रीवास्तव
वरिष्ठ साहित्यकार एवं नियमित सदस्य फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई
स्थाई संपर्क:-- नाथनगर, इंदिरानगर, गाँधीनगर बस्ती (उ.प्र.)
मोबाइल :- 09532793537
08858757963
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