सोमवार, 8 अगस्त 2016

दिल को छूती राहुल द्विवेदी स्मित की ग़ज़ल

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रौशनी की जद से आगे तक गुजरता कौन है ।
तीरगी में मुँह छुपाये एक साया कौन है ।।
🍀🌿🍀🌿
इस सियासत के अजब किरदार होते हैं मियाँ ;
ये बताना है बहुत मुश्किल कि सच्चा कौन है ।
🐚🐝🐚🐝
रौशनी की चाह में तुमने जला दीं बस्तियाँ ;
फिर भी उस घर में दिया अक्सर जलाता कौन है ।
🌹🌿🌹🌿
चन्द एहसासों के सिक्के और कुछ सपने लिए ;
बूढ़े बरगद के हवाले से सिसकता कौन है ।
🍁🌲🍁🌲
अब तलक हैरान हूँ ख्वाबों से होकर रूबरू ;
इन निगाहों को खुदाया ख्वाब देता कौन है ।
🍀🍂🍀🍂
दौरे-रुक्सत में हुई है जिंदगी से आशिकी ;
देख कर मुझको न जाने मुस्कुराया कौन है ।
🌴🌾💐🌴

राहुल द्विवेदी 'स्मित'
इटौंजा, लखनऊ

2 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है ! ... लाजवाब ! मुबारकबाद आपकी जानदार कलम को !

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