गीतिका
आधार छंद -वाचिक स्रिग्वणी
वाचिक मापनी- २१२ २१२ २१२ २१२
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स्वस्थ तन स्वच्छ मन स्वच्छ धन चाहिए ।
स्वच्छ सम्पूर्ण भारत वतन चाहिए ।
साधना के लिए काव्य साहित्य की ।
अध्ययन साथ चिन्तन मनन चाहिए ।
भाव सँग शिल्प का हो समन्वय नया ।
तीव्र हो धार ऐसी कहन चाहिए ।
अनुगमन कर बहेंगी पतित पावनी ।
तप भगीरथ सरीखा गहन चाहिए ।
सिद्ध होगा न लांछन कभी आप पर ।
अग्नि में जानकी सा दहन चाहिए ।
जो प्रणय को परख लें मिलाकर नयन ।
प्रीति के पारखी वो नयन चाहिए ।
गज़ल
बह्र-१२२ १२२ १२२ १२२
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हमारे लहू का जो' प्यासा रहा है ।
लहू का उसी से ही रिश्ता रहा है ।
उसे आजमाया कई बार फिर भी।
करें क्या उसी पर भरोसा रहा है ।
खुशी का अगर मोल अनमोल है तो ।
कहाँ दर्द का भाव सस्ता रहा है ।
मिली है हमेशा ही' मंजिल उसी को ।
लगातार आगे जो' बढ़ता रहा है ।
कभी कर सका वो न इज़हार हम से ।
पड़ा सामने जब तो चुप सा रहा है ।
हुई ज़िन्दगी पिन कुशन की तरह अब ।
हटा एक पिन एक चुभता रहा है ।
मुक़म्मल कभी घर न हो पाया' रौशन ।
दिया इक जला, एक बुझता रहा है ।
मुक्तक
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नहीं बैठे कभी मिलते वे' ----दिनभर आशियानों पर ।
बुलन्दी प्रिय जिन्हें भी है ------वे' रहते हैं उड़ानों पर ।
हृदय में है इरादा दृढ़,-------- परों में हौसला जिनके ।
पहुँच कर ही वे' दम लेते हैं 'मंजिल के ठिकानो पर ।
मुक्तक
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शल्य क्रिया दहशतगर्दी की, हो तो टाँग अड़ाना मत ।
सैन्यबलों के ऊपर ईटें , पत्थर अब बरसाना मत ।
पैलट गन को छोड़ काट कर, रख देंगें तलवारों से ।
अब विष बेलें घाटी की फिर, सड़कों पर फैलाना मत ।
संक्षिप्त परिचय
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पूरा नाम - सुनील कुमार त्रिपाठी
पिता का नाम - स्व. पंडित चन्द्रदत्त त्रिपाठी "शास्त्री"
माता जी का नाम- स्व.रामपति त्रिपाठी
स्थायी निवासी - ग्राम-पीरनगर
पोस्ट -कमलापुर ,जिला-सीतापुर
निवास जन्म से लखनऊ में-
स्थानीय पता:-
288/204 आर्यनगर लखनऊ -226004।
शिक्षा - परास्नातक विधि
व्यवसाय- इलेक्ट्रानिक
शौकिया लेखन ।
मुक्तक, छंद, गीतिका
प्रथम प्रकाशित रचना :- 'गीतिकालोक' गीतिका संकलन में
सम्मान:- गीतिकाश्री सम्मान (सुलतानपुर उ.प्र.)
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