गीत
नाम नहीं लूँ किसी एक का,
यहाँ सभी जन गुरू हमारे।
साहित्यिक कुछ ज्ञान नहीं है,
सीख रहा हूँ लिए सहारे।
डाल सकूँ मैं भाव गीत में,
हरदम यही कामना रहती।
सुर लय ताल नहीं मैं जानूँ,
कलम स्वयं ही कविता कहती।
नहीं ज्ञात है मुझको कुछ भी,
शब्द निकलते उर से सारे।
नाम नहीं लूँ................😊
मात्राभार मापनी लेकर,
मुक्तक छन्द गीतिका लिखता।
दिल में जो भी रच बस जाए,
गीत वही तो मैं हूँ रचता।
शब्दों से श्रृंगार करूँ जब,
गढ़ता हूँ तब चाँद सितारे।
नाम नहीं लूँ.................😊
मुझमें कमी अभी है बाकी
खुले आम स्वीकार करूँ मैं।
छोटे बड़े कहें जो मुझसे,
बातें उनकी ध्यान धरूँ मैं।
कोई भी व्यवधान अगर है,
दूर करूँ मैं बिना विचारे॥
नाम नहीं लूँ.................😊
दिनेश कुशभुवनपुरी
बरौंसा, सुलतानपुर उ प्र
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