गुरुवार, 3 मार्च 2016

मनोज मानव - गीतिका

बूढी  दादी  के  हँसने  का , एक  बहाना  हो  जाता  है
कभी कभी पोते पोती का , जब घर आना हो जाता है।

माँ  बापू  की  लाडो  बेटी , स्वर्ग  बना  देती  है  घर  को
अंजाना दर क्यों फिर उसका , सदा ठिकाना हो जाता है।

सास ससुर पति सँग बच्चों की , सभी जरूरत पूरी करती
खुद पर ध्यान दिए नारी को , एक जमाना हो जाता है।

खलने लगता हैं नारी को  , तब अपना ही रूप नजर में
गिद्धों की नजरों में जब वह , रूप निशाना हो जाता है।

अफसर महिला सहकर्मी को , समझाता है समय समय पर
काम  सहारे  कैसे  ऊँचे , पद  पर  जाना  हो  जाता  है।

राजमार्ग पर रुके ट्रको में , समय बिता कुछ आती है वह
कुछ दिन को बच्चों के जीने , भर का खाना हो जाता है।

प्रेम, त्याग  की प्रतिमा नारी , जिसने जन्म दिया मानव को
कैसे  इसके  सब  कष्टो  से , वह  अंजाना  हो  जाता  है।

      ------(मनोज मानव)-----

चित्र गूगल से साभार

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