मंगलवार, 1 मार्च 2016

मनोज मानव-काव्य शिल्पी समूह में गीतिकाएं और उनपर टिप्पणियाँ

गीतिका-प्रथम

सब लिए अंगार हाथों में लिए जल कौन है
राख में बदले इन्हें वह नेक बादल कौन हैं

था जमाना लोग जलते थे पराई आग में
मर मिटे जो दूसरों पर आज पागल कौन हैं

गीत सुनकर पूर्ण भारत झूम उठता आज भी
सोचता हूँ अब लता के बाद कोयल कौन हैं

बात अब उपकार की उपदेश बन कर रह गयी
घाव पर छिड़के नमक सब आज सन्दल कौन हैं

आदमी ही आदमी का बन गया दुश्मन यहाँ
स्वार्थ की सब मूर्त लगते माँ का आँचल कौन है

आज भारत माँ सभी से पूछती आँसू लिए
द्रोह की आवाज से करता जो घायल कौन हैं

खोजते परिवार हैं सब खुशबुएँ त्यौहार की
बाँटता जग में ख़ुशी के आज वह पल कौन है

खोजता इंसान हूँ जिसके लिए पूछे सभी
आज मानव की बना आँखों का काजल कौन है

     ------(मनोज मानव)-----

गीतिका-द्वितीय

बूढी दादी के हँसने का , एक बहाना हो जाता है
कभी कभी पोते पोती का , घर जब आना हो जाता है

माँ बापू की लाडो बेटी , स्वर्ग बना देती है घर को
अंजाना दर क्यों फिर उसका , सदा ठिकाना हो जाता है

सास ससुर पति सँग बच्चों की , सभी जरूरत पूरी करती
खुद पर ध्यान दिए नारी को , एक जमाना हो जाता है

खुद को ही खलने लगता है , यौवन तब श्रृंगार नारि का
गिद्धों की नजरों में जब वह , बदन निशाना हो जाता है

अफसर महिला सहकर्मी को , समझाता है समय समय पर
काम सहारे कैसे ऊँचे , पद पर जाना हो जाता है

राजमार्ग पर ट्रको में कुछ , समय बिताकर आती है माँ
कुछ दिन बच्चों के जीने के , लायक खाना हो जाता है

प्रतिमा त्याग , प्रेम की नारी , जिस मानव को जन्म है देती
कैसे इसके सब कष्टो से , वह अंजाना हो जाता है

      ------(मनोज मानव)-----

गीतिका-तृतीय

लिखा दुख भाग्य में केवल हमें सहने से है मतलब
नदी बहती है आँखों से जिसे बहने से है मतलब

जिधर देखो उधर धोखा करे विश्वास हम किसका
लिए अंगार दिल में हैं जिन्हें दहने से है मतलब

इमारत खूबसूरत सी बनाई थी जो सपनों की
हुई है आज वह खंडहर जिसे ढहने से है मतलब

करे हम व्यर्थ क्यों चिंता, कहेंगे लोग क्या हमको
करेंगे कर्म हम अपना , उन्हें कहने से है मतलब

बना पाए नहीं घर ईंट पत्थर का तो क्या ग़म है,
बसे दिल में हैं कितनों के हमें रहने से है मतलब

     ------( मनोज मानव)-------

गीतिका-चतुर्थ

आइना देश में लोगो को दिखाना होगा
आपसी द्वेष को हम सबको मिटाना होगा

आग नफरत के जो ईंधन से लगाते नित है
कितना वे और गिरेंगे ये बताना होगा

पक्ष गद्दार का ले जो है लगाते नारे
उनको आजादी का मतलब भी सिखाना होगा

देश के मान को हम आँच न आने देंगे
हमको वादा ये सदा खुद से निभाना होगा

ले चुका रूप है बीमारी का ये आरक्षण
देश से शीघ्र ही ये रोग मिटाना होगा

सोच परहित की बदल स्वार्थ में दी है जिसने
शत्रु हर हाल में ये हमको हराना होगा

बेवफा हो गयी मानव से जो मानवता है
हमको दोनों का मिलन फिर से कराना होगा

     ------(मनोज मानव)----

गीतिका-पञ्चम

सिद्धांत श्रेष्ठ जन के बदलते कभी नहीं
देकर वचन किसी को मुकरते कभी नहीं

जो साँप पालते हैं सदा आस्तीन के
वे लोग जिंदगी में पनपते कभी नहीं

इंसान कौन है जो'  मुसीबत न झेलता
विश्वास जिनका मित्र वे डरते कभी नहीं

जो जिंदगी में रखते नजर लक्ष्य पर सदा
मंजिल की वे डगर से भटकते कभी नहीं

संस्कार  जिनको मात पिता देते मित्र बन
बच्चे वे जिंदगी में बिगड़ते कभी नहीं

जिनको हैं फ़िक्र बच्चों के अच्छे भविष्य की
बच्चों के सामने वे झगड़ते कभी नहीं

सुख भाग्य में लिखा है तो दुख भी लिखा हुआ
सारे तो दिन समान गुजरते कभी नहीं

मानव की जिंदगी तो खुली सी किताब है
क्यों लोग ठीक से इसे पढ़ते कभी नहीं

      ------( मनोज मानव)-----
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संक्षिप्त परिचय:---------
मनोज मानव
जूनियर इंजीनियर
पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी बिजनौर
फोन - 9837252598
साझा संकलन - कवितालोक प्रथम उद्भास
तेरी यादें
आने वाले साझा संकलन - शुभमस्तु -3
गितीकालोक।
आकाशवाणी नजीबाबाद से सम्बद्ध

डॉ अर्चना गुप्ता:----------
वाह्ह्ह्ह् मनोज जी की सभी रचनाये बहुत सुन्दर हैं शिल्पबद्ध और भावपूर्ण । बूढी दादी के हंसने ..........बहुत ही सुन्दर । हार्दिक बधाई मनोज जी

पुनीता भरद्वाज जी:---------
वाहहहह आदरणीय मनोज मानव जी कितना सुन्दर लिखते हैं आप ---
गीत सुनकर पूर्णभारत झूम उठता आज भी
सोचता हूँ अब लता के बाद कोयल कौन है ।
👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽

बूढ़ी दादी के हंसने का , एक बहाना हो जाता है
कभी कभी पोते पोती का, घर जब आना हो जाता है
👌🏽👌🏽👌🏽👌🏽👌🏽👌🏽👌🏽👌🏽

बना पाए नहीं घर ईंट पत्थर का तो क्या ग़म है,
बसे दिल में हैं कितनों के हमें रहने से है मतलब
👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽

जो साँप पालते हैं सदा आस्तीन के
वे लोग जिन्दगी में पनपते कभी नहीं ।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
आदरणीय मानव जी क्या कहूँ सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक ।आपके बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना है ।  हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए

विजय नारायण सिंह:---------
बड़े भाई आदरणीय मनोज मानव जी की रचनायें काव्य, छन्द व रस की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ हैं ।

बूढ़ी दादी ....... एक बेहद भावनात्मक और आज नारी की सामाजिक स्थिति का दर्दनाक किन्तु सत्य चित्रण है । अन्य सभी एक से बढ़कर एक नगीने हैं ।

आप मेरे बड़े भाई, शिक्षक, मार्गदर्शक और मेरे गाइड हैं । आपकी रचनाओं का रसास्वादन करना मेरे लिये एक पाठ की तरह है । आप की रचनाओं में जिस प्रकार सटीक शब्दों का समायोजन होता है वह सीखने योग्य है । मेरी ओर से नमन एवं ढेरों शुभकामनाएँ ॥
😊💐

राहुल द्विवेदी स्मित:---------
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आज मेरे पसंदीदा रचनाकार मित्रों में से एक मनोज मानव जी की रचनाएँ पटल पर प्रस्तुत की गयीं
आपको पढ़ना एक सुखद अनुभूति कराता है
आपका का व्यक्तित्व आपकी रचनाओं से स्वतः मुखरित हो उठता है ।
आपकी सीधी सरल शैली बड़ी से बड़ी बात को भी बड़ी ही सहजता से कह जाती है
आपको पढ़ना अत्यंत ही सुखद अनुभूति कराता है ।
बहुत बहुत बधाई आपकी समर्थ लेखनी को
👏👏👏👏👏

संजीवमिश्र पीलीभीत:----------
"कुछ दिन बच्चों के जीने के, लायक खाना हो जाता है।" मनोज जी साहसिक पंक्तियों के लिये आपको नमन करता हूं। समाज के बदरंग चेहरे को उजागर करतीं हैं आपकी गजलें। योंही दीवने नहीं हैं आपकी कलम के। गजब का सामयिक चिन्तन है आपका। आपके स्वर्णिम भविष्य की मंगलकामनाओं के साथ - संजीव मिश्रा - पीलीभीत।
🙏🏻🙏

Dheeraj Srivastwa:----------
✏📚 काव्य शिल्पी ✏📚
सास ससुर पति सँग बच्चों की, सभी जरूरत पूरी करती
खुद पर ध्यान दिये नारी को, एक जमाना हो जाता है!

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह आत्मीय मानव जी वाह्ह्ह्ह्ह! आनंद आ गया! जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी! आपके सुंदर,सरल एवं संवेदनशील व्यक्तित्व को रेखांकित करती हैं आपकी रचनाएँ... श्रेष्ठ शिल्प सहज शब्द सँयोजन एवं सुंदर तथा सार्थक भावों से पुष्ट सभी गीतिकाएँ बहुत सुंदर हैं....
इधर काफी परिवर्तन आया है आपके लेखन में....👌�👌�
आने वाले समय में हम सभी मित्रों को आपसे बहुत उम्मीदें हैं! निश्चित तौर पर आप बहुत बहुत और बहुत बधाई के पात्र हैं! हार्दिक शुभकामनाएँ!
--- धीरज श्रीवास्तव
🙏💐🙏💐

Alok Mittal:------//----
वाहह वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् मनोज भाई क्या खूब आपकी कही रचना के कायल है मित्र बहुत कम समय में आपने बहुत ख्याति अर्जित करी है लगभग आपकी कही हर गीतिका ग़ज़ल हम सब पढ़ते और सुनते रहते है ।। गज़ब लिखते है आप वाह्ह्ह्
👏🏼👏🏼👏🏼👏

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