सिक्त-सुरभित-सर्जना ब्रह्माण्ड-विस्तृत गीतिका
अवनीश त्रिपाठी
गरएं,सुलतानपुर
पर्ण पर, हर पृष्ठ पर अब है उदाहृत गीतिका||
धार, झरने और लहरें बिम्ब बनकर चल पड़े
शिल्पगत आभूषणों से ही अलंकृत गीतिका।।
रातरानी, गुलमुहर, कचनार टेसू खिल उठे
गन्ध मलयज से परिष्कृत और विस्तृत गीतिका।।
जब प्रतीची के शिखर चढ़तीं प्रभाकर-रश्मियाँ
साँझ अवगुण्ठन उठाए नेह उद्धृत गीतिका।।
सृष्टि की अवहेलना, छल-छद्म की भाषा नहीं
भाव संस्कारित लिए आई परिष्कृत गीतिका।।
भाव संस्कारित लिए आई परिष्कृत गीतिका।।
तृप्ति का आभास, संवेदन, घनी अनुभूतियाँ
भूख का संत्रास, तृष्णा, पीर-निःसृत गीतिका।।
दूब, अक्षत, धूप, हल्दी, पुष्प, दीपक, दूध, घी
सत्यनारायण कथा में पञ्च अमृत गीतिका।।
नासिका सिर ,नेत्र, मुख, मन, अस्थियों की देह है
रिक्तिका,केन्द्रक,श्वसन,धमनी शिरा धृत गीतिका।।
अवनीश त्रिपाठी
गरएं,सुलतानपुर
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