बुधवार, 20 जनवरी 2016

मनोज जैन मधुर (नवगीत)

📑हम जड़ों से कट गए📑
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍

हम जड़ों से कट गए।
📚
नेह के वातास की
हमने कलाई मोड़ दी।
प्यार वाली छाँव
हमने गाँव में ही छोड़ दी।

मन लगा महसूसने
हम दो धड़ो में बँट गए।
📚
डोर रिश्तों की नए
वातावरण-सी हो गई।
थामने वाली जमीं हमसे
कहीं पर खो गई।

भीड़ की खाता-बही में
कर्ज से हम पट गए।
📚
खोखले आदर्श के हमने
मुकुट धारण किए।
बेंचकर हम सभ्यता के
कीमती गहने जिए।

कद भले अपने बड़े हों
पर वजन में घट गए।

---मनोज जैन
कटनी,मध्यप्रदेश
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