अजब है यार मंजर बात क्या है
वो आई है सँवरकर बात क्या है.
खबर बस प्यास की पाकर लबों तक
चला आया समंदर बात क्या है.
उसे दिन रात नभ से देखतें हैं
सितारे आँख भरकर बात क्या है.
बहुत सी कोशिशों के बाद भी क्यूँ
नहीं बदला मुक़द्दर बात क्या है.
गले मेरे लिपट वो खूब रोयी
न जाने क्यूँ सिसककर बात क्या है.
अकेली खुद है फिर भी पूछती है
नदी मुझसे कि "सागर" बात क्या है.
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