सोमवार, 18 जनवरी 2016

गोप कुमार मिश्र का परिचय एवं गीत

नाम - गोप कुमार मिश्र
जन्मतिथि - 21-3-1959
निवास - ग्राम - चड़रा , पोस्ट - महोली
जिला -सीता पुर . उ० प्र०
वर्तमान पता --
भेरिया रेहिका , बी. एम. पी. -7
भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण , कटिहार ( बिहार)
चलभाष - 09650329494
मेल आई.डी gopekumar@rediffmail.com
शिक्षा - डिप्लोमा ( इलेक्ट्रानिक्स)
सम्प्रति
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण में सहायक महा प्रबंधक पद पर कार्यरत
सम्प्रति - कई मंचो से साहित्य सम्मान से सम्मानि
प्रकाशित कृतियाँ - साझा संकलन 'कवितालोक : प्रथम  उद्भास प्रमुख पत्र पत्रिकाओं तथा ई- पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित!

             【प्रथम गीत】
          ~कंटको की छाँव में~
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जिंदगी हमनें गुजारी कंटको की छाँव में।
चलते चलते पड गये है छाले मेंरें पाँव में।।

गोद धरती थी बिछौनाँ तान अम्बर चदरियां।
सुबह थी मुझको उठाती मन्दिरों की घण्टियां।।
ये कहाँ हम आ गये है कोटरों के गाँवमें
                               चलते चलते पड------।।

चाँद मट मैला हुआ श्वांस भी दूषित हुई।
प्रगतिपथ पर यूं बढे मंजिलें धूमिल हुईं।।
लोग रहते हैं यहाँ पर अपनें अपनें दाँव में
                               चलते चलते पड--------।।

मंजिलों की ख्वाहिशो में रात दिन भटका किए।
प्यास आंखों में जगाकर नेह का सदका लिए।।
मुश्किलें आसान होंगीं मेरी अगले ठाँव में
                               चलते चलते पड--------।।

धर्म ग्रंथो मे लिखी और श्रुति पुराणों नें कही।
आदमी के वास्ते काम कुछ मुश्किल नहीं।।
देरी इक संकल्प की देरी बनें क्यूं पाँव में
                                चलते चलते पड-------।।
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   【द्वितीय गीत】
छोटी सी स्वपनिल आशा
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हर घर में, तुलसी का चौरा,
घनी नीम की छाँव रे।
नयनों में ज्योती बन बसता,
ऐसा मेरा गाँव रे।।

निर्मल सी नदिया बहती है।
पवन मलय मानों कहती है।।
कन्धे ज्यादा, बोझ जरा सा,
गम का , जले अलाव रे।
ऐसा मेरा गाँव रे।।

बेटी हिरनीं सी है डोलें।
चाकर को भी काका बोलें।।
गली-२ है बुलबुल गाती
कोई करे ना, काँव रे।
ऐसा मेरा गाँव रे।।

राम- रहीम मे भेद नही है।
कोई बैद्य –हकीम नही है।।
प्राणों मे पाहुन बसते है
ऐसा अनुपम ठाँव रे।
ऐसा मेरा गाँव रे।।

शायद देख रहा मै सपना।
अपनों से भी बढकर अपना।।
मै जागूँ, और सच हो जाये
मेरे सपनें का गाँव रे।
ऐसा मेरा गाँव रे।।

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