गीत-बसन्त
आज धरा के आँगन देखो
फ़ैल रही मादक हरियाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।
लेकर गन्ध मलय की भू पर
मन्द पवन के झौंके आते।
अवनी के आँगन का आतप
शीतलता से हर ले जाते।।
नूतन किसलय लेकर लतिका
मन ही मन में इठलाती है।
फूलों के रस की वो गागर
अब छलक छलक कर जाती है।।
यौवन आज विपिन पर आया
मन में प्रमुदित है वनमाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।
पिंगल पिंगल प्यारी धरती
अरुण किरण की भर कर रोली।
प्रणय कामना लेकर मन में
दुल्हन आज गगन की हो ली।।
पिकप्रिय में पिकबयनी देखो
पिकबल्लभ पर जाकर डोली।
पिअराई धरती ने पहनी
पीली चूनर पीली चोली।।
पीत धरा ने भरी माँग में
सदा सुहागन वाली लाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।
मन में छवि मधुपति की लेकर
मधुमति में मधु धारा बहती।
मधुमाधव का स्वागत करने
व्याकुलता कलियों में रहती।।
ऋतुराज तुम्हारे वन्दन में
फूलों ने सम्पुट खोल दिया
मधु मकरन्द लिए भँवरों ने
लो गीतों में रस घोल दिया।।
तेरा आलिंगन करने को
व्याकुल है चम्पा की डाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।
जगदीश जलजला
बारा राजस्थान
वाह्ह्ह वाह्ह्ह्ह अनुपम सृजन बहुत बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्ह्ह् बहुत ही सुंदर गीत वाह्ह्ह्ह्ह् आनन्द आ गया । एक सुंदर सार्थक ओजपूर्ण गीत । नमन आपकी लेखनी को । सादर
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