गुरुवार, 28 जुलाई 2016

जगदीश जलजला का ओजपूर्ण सृजन

             पुरस्कारों की वापसी
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केवल वन्दन सीखा जिनने सत्ता के गलियारों का।
उनको प्रतिफल मिलता आया शासन के उपहारों का।।

चरण वन्दना चाटुकारिता मापदण्ड रह जाते हैं।
उस शासन के पुरुस्कार को नालायक ही पाते हैं।।

जो बादल सूरज पर छा कर तनिक देर इठलाते हैं।
लेकिन काली काल घटा से तेज नहीं ढक पाते हैं।।

कर्तव्य कर्म के कौशल से जो भी इसको पाते हैं।
बोलो कब वो पुरुस्कार को भारत में लौटाते हैं।।

पूछ रहा हूँ खुले मंच से उत्तर मुझको दे देना।
तर्क सत्य हो अगर नहीं तो प्राण यहीं पर ले लेना।।

छह दशकों से खूब रेवड़ी बाँटी है जिन लोगों में।
योगदान उनका इतना ही लिप्त रहे वो भोगों में।।

आग लगा कर घाटी में जब पंडित मारे जाते हैं।
जब दिल्ली में सरदारों के शीश उतारे जाते हैं।।

जब सड़कों पर व्याभिचार का नंगा नर्तन होता है।
जब सड़को पर भूखा भारत तड़प तड़प कर रोता है।।

जब भारत का कौना कौना धधका था अंगारों से।
जब घाटी में जला तिरंगा घोर विभाजक नारों से।।

याद गोदरा आता है क्या जिन्दा जलती लाशों का।
बने हुए थे सूत्रधार तुम खूनी खेल तमाशों का।।

तब सहिष्णुता का यह नारा तुमको याद न आया था।
धूँ धूँ करके जलता भारत तुमको कैसे भाया था।।

व्यर्थ एक दुर्घटना को तुम रंग सियासी देते हो।
सम्प्रदाय सद्भाव यहाँ पर छीन देश का लेते हो।।

सकल विश्व में दृष्टि घुमा लो फिर मुझसे कहने आना।
भारत जैसा देश मिले तो आकर के तुम बतलाना।।

जहाँ शांति की सरिता बहती लेकर भाई चारा है।
जहरीले उद्गारों से क्यों तोड़ा वही किनारा है।।

इस धरती की खा कर रोटी इसके जल को पीते हो।
खुली हवा में लेकर साँसे इसी धरा पर जीते हो।।

कर्ज भूल कर माटी का तुम गीत विदेशी गाते हो।
काले कलुषित भाव लिए तुम वहाँ नहीं क्यूँ जाते हो।।

पता तुम्हे लग जायेगा फिर भारत कैसा होता है।
जाओ आज तुम्हारे आया पाकिस्तानी न्यौता है।।

देता हूँ मैं खुली चुनौती रजत पट्ट के तारे को।
गाली देकर एक दिखा दे दाऊद से हत्यारे को।।

दम घुटता है यदि यहाँ तो चला नहीं क्यों जाता है।
रे गद्दार देश को अपनी सूरत क्यों दिखलाता है।।

और सुनो सम्मान यहाँ पर जो लौटाने आए हैं।
मातृ भूमि का गीत नहीं जो जीवन में लिख पाए है ।।

कितना वो पुरषार्थ लिए हैं हमने उनमें देखा है।
अपने अपने आकाओं का लिखा जिन्होंने लेखा है।।

सम्मान देश का दो वापस अब आदेश हमारा है।
अब सम्मान उसी का होगा जिन्हें वतन ये प्यारा है।।

पौरुष हीन पुरुष हैं वो जो पुरुस्कार लौटाते हैं।
माँ वाणी वरदानी को कब पापी फूल चढ़ाते हैं।।

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जगदीश सोनी
उपनाम -  जलजला
जन्म तिथि - 24 जुलाई 1964
शिक्षा - एम. काम. व्या. अध्ययन,एम. ए. हिंदी साहित्य , बी. एड.
शैली - ओज
पता -  बी  - 4 प्रताप नगर बाराँ, 325205 ( राज.)
प्रकाशन -  प्रथम कृति - बलि पथ
द्वितीय - प्रेस में
सम्पर्क - 9414190551
             9571818218

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