शनिवार, 16 सितंबर 2017

पुस्तक मेला लखनऊ में कवितालोक द्वारा 'काव्य-गंगोत्री' का आयोजन

           कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ के सौजन्य से हिन्दी दिवस पर ‘काव्य-गंगोत्री’ सामारोह का आयोजन 15वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका लखनऊ में प्रो. उषा सिन्हा पूर्व अध्यक्ष भाषा विज्ञान विभाग लखनऊ विश्व विद्यालय की अध्यक्षता और संस्थाध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में अनागत काव्यधारा के प्रवर्तक डॉ. अजय प्रसून और विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे एवं साहित्यिक संस्था सुंदरम के अध्यक्ष नरेंद्र भूषण उपस्थित रहे। आयोजन के प्रथम चरण में आमंत्रित चौबीस हिन्दी सेवी रचनाकारों को उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंट कर ‘साहित्य गंगोत्री’, ‘काव्य गंगोत्री’ और ‘ग्रंथ गंगोत्री’ मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। इस सत्र का संचालन कविवर सुनील त्रिपाठी ने किया। दूसरे चरण में कवितालोक के पिछले आयोजन की स्मारिका ‘गीतिका गंगोत्री’ का लोकार्पण अध्यंक्ष, मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया, जिसे उपहार स्वरूप भेंट करने वाले सुभाञ्जलि प्रकाशन के संचालक डॉ. सुभाष चन्द्र को 'ग्रंथ गंगोत्री' सारस्वत सम्मान से विभूषित किया गया। काव्य गंगोत्री के तीसरे चरण में हिन्दी दिवस पर काव्यपाठ का क्रम प्रारम्भ हुआ जिसमें रचनाकारों ने हिन्दी की विभिन्न विधाओं में मनोहारी काव्यपाठ प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन संस्थाध्यक्ष ओम नीरव ने किया। वाणी वंदना से काव्य-गंगोत्री का प्रारम्भ करते हुए ओज कवि उमाकान्त पाण्डेय ने इन पंक्तियों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया-
माँ शरदे करूँ मैं शत-शत तुम्हारा वंदन,
सब काट दो मनस के जितने पड़े हैं बंधन।
       श्याम फतनपुरी ने गीतिका के माध्यम से हिन्दी-प्रयोग का सार्थक संदेश देते हुए कहा-
विश्व-पटल पर श्याम, बढ़ेगा भारत अपना,
हिन्दी में तुम अगर, राष्ट्र व्यवहार करोगे।
      पद्मकांत शर्मा प्रभात ने हिन्दी के गौरव की बात को कुछ इसप्रकार व्यक्त किया -
जन जन के प्राण प्राण में है बसी हुई
हिंदी हमारे राष्ट्र का गौरव निशान है
       सौरभ टण्डन 'शशि' की इन पंक्तियों को सराहा गया
प्रेम घुला हर शब्द में, रखना मुझे सँभाल,
भारत की पहचान हूँ, सुन हिन्दी के लाल ।।
       डॉ अशोक अज्ञानी ने इन पंक्तियों ने श्रोताओं को वाह-वाह करने पर विवश कर दिया- 
हिन्दी का वही हाल है हिन्दोस्तान में
लाचार बाप की ज्यों बेटी जवान है।
       डॉ अजय प्रसून ने हिन्दी के पक्ष में स्वर मुखरित किया-
जिसका शब्द शब्द मधुरिम है जिसमे भाव भाव पूरित है ।
जिसकी लिपि है देवनागरी, उसमें मानवता संचित है ।
यह देवों की मनोकामना मन में आठों प्रहर रहेगी ।
        नरेंद्र भूषण की बात पर खूब वाहवाही मिली-
मान करें हर भाषा का,पर /हिन्दी पर अभिमान करें हम।
चर्चा हर भाषा की हो,पर/हिन्दी का गुणगान करें हम।
        दिनेश कुशभुवनपुरी ने सशक्त स्वर अपने विचार व्यक्त किए कुछ ऐसे-
दुविधा अब मत पालिए, ये है अपना देश।
हिंदी का गौरव बढ़े, ऐसा करो विशेष॥
       उमा शंकर शुक्ल ने हिन्दी के पक्ष में पढ़ा तो श्रोता झूम उठे-
मान हमारा शान हमारी हिन्दी है ।
हमको प्राणों से भी प्यारी हिन्दी है ।।
       शोभा दीक्षित भावना ने मन के उद्गार इसप्रकार व्यक्त किए-
नीले अम्बर का व्याकरण इसमें,
संस्कृति का सुवास है हिंदी।।
       निवेदिता श्रीवास्तव ने गागर में सागर भरते हुए कहा- 
हिन्दी भाषा पूज्य है, करें सदा सम्मान।
हिन्दी माता तुल्य है, दूजी मौसी जान।
       संध्या सिंह के दोहे को श्रोताओं ने भरपूर सराहा-
हिंदी में अनुभूतियाँ हिंदी में उद्गार ।
बाकी सब अनुवाद है हिन्दी मूल विचार।
       मन मोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने सुनाया -
क्यों मातृ-भाषा’ अपने’ ही’ घर में है उपेक्षित,
हिन्दी बिना है’ देश का’, शृंगार अधूरा।
       डॉ मंजु श्रीवास्तव ने हृदय के उद्गार कुछ इसप्रकार व्यक्त किए-
हँसाती है, रुलाती है, मनो को गुदगुदाती है,
हमारी मातृभाषा ये सरस गङ्गा बहाती है।
        सुनील त्रिपाठी ने करतल ध्वनि के बीच पढ़ा-
पढ़ें लिखें बोलें हिन्दी हम हिन्दी से जोड़े सबको,
बात करें जब हिन्दी की तो दिल में हिंदुस्तान रहे।
       ओम नीरव ने सुनाया -
भारत के जन-मन बसी, सुन्दर सरस सुगम्य।
माँ वाणी की वत्सला, हिंदी परम प्रणम्य।
       काव्य पाठ से आयोजन को शिखर तक पहुंचाने वाले अन्य कवियों में मुख्य थे- डॉ उषा सिन्हा धीरज श्रीवास्तव, डॉ अमिता दुबे, डॉ कैलाश नाथ मिश्र, उमा शंकर शुक्ल, पारसनाथ श्रीवास्तव।

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