गीतिका
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वतन के काम जो आए वही जीवन सुहाना है
चमन सा देश बन जाए सपन सच कर दिखाना है
चलाओ आँधियों में तीर अपने लक्ष्य को साधो
जमाने भर में भारत का वही सिक्का चलाना है
हराओ दुश्मनों को यूँ, पलट कर फिर नहीं आए
शहीदों की चिताओं से किया वादा निभाना है
महीनों राख उड़ती थी चिताओं से ये कहने को
अधूरे छूटे कामों को नहीं अब भूल जाना है
बढ़ाओ हाथ कदमों को मिला लो एकजुट हो कर
धरम के नाम पे आई दरारों को मिटाना है
दिलों में आग जो पलती रही बरसों ही चुपके से
हवा दे कर उसी अंगार को शोला बनाना है
भगत सुखदेव बिस्मिल हैं यहाँ नायक हमारे जब
वतन के काम आए जान ये मौका कमाना है
जगत वालों सुनो तुम सब गुलामी छोड़ दी हमने
फलक पे नाम हिन्दोस्ताँ बहुत ऊँचा उठाना है !!
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गज़ल
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क्या हाल हो गया ये हमारा है आजकल
हमको तो बस ग़मों का सहारा है आजकल !
कल तक धड़कता सीने में दिल था हमारा ही
क्यों हक़ हुआ यूँ उसपे तुम्हारा है आजकल !
उल्फ़त की आस दिल में लिए आ गई कहाँ
देखो जिसे वो इश्क़ का मारा है आजकल !
पहले गुनाह कर के मुकरते थे शान से
बेजुर्म हर सज़ा भी गवारा है आजकल !
भूला न प्यार मेरा जहाँ छोड़ कर भी वो
तकता मुझे जो बन के सितारा है आजकल !
था जीत की मिसाल ज़माने के सामने
वो शख़्स खुद से आप ही हारा है आजकल !
दिल जल रहा है हिज़्र में अब लौट आओ तुम
अश्कों का पानी ज्यादा ही खारा है आजकल !
वो मिल नहीं सकेंगे हकीकत में तो कभी
ख्वाबों से 'ममता' अपना गुज़ारा है आजकल !
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गीत
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देव हो या हो मनुज तुम मुझको अच्छे लगते हो...
अश्क दो या दो ख़ुशी तुम मुझको अपने लगते हो !
गैर जब कहते हो तुम तो टीस सी उठ जाती है
कंटकों पे चलने की पीड़ा उभर सी आती है !
छुप के तुमको दूर से मैं देख आहें भरती हूँ
हो मिलन कैसे हमारा सोचती ये रहती हूँ !
दूर जितना भी रहो तुम पास मेरे लगते हो...
देव हो या हो मनुज तुम मुझको अच्छे लगते हो !
आँख में जब नेह दिखता मन उछल के नाचता
मोर बन सावन समझ ये पंख अपने खोलता !
भीग के सपनो की बारिश में ये तन भी झूमता
और चाहत की हवा में सुर ये अपने घोलता !
चाह की इस रुत में तुम मुझको सुरीले लगते हो...
देव हो या हो मनुज तुम मुझको अच्छे लगते हो !
बादलों से सीख कर आई हूँ छाने का हुनर
सीख जाओ तुम भी चाहत को लुटाने का
हुनर !
भावना है ये प्रबल अब कम न होगी लेश भी
तुम संवारों आज आके उलझे मेरे केश भी !
उलझे सुलझे जैसे भी हो मुझको सच्चे लगते हो..
देव हो या हो मनुज तुम मुझको अच्छे लगते हो !
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परिचय
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नाम - ममता लड़ीवाल
शिक्षा - एम. कॉम (ABST)
पैतृक निवास - जयपुर ( राजस्थान )
वर्तमान निवास - ग़ाज़ियाबाद
शौक - लेखन, दोस्त बनाना
प्रकाशित साँझा संग्रह - हौसलों की उड़ान, तेरी याद, गीतिकालोक, पुष्पगंधा, काव्योदय प्रथम व द्वितीय।
साहित्यिक सम्मान -
कवितालोक गौरव सम्मान ( हिसार ),
कवितालोक गौरव सम्मान ( बागपत ),
आगमन उत्कृष्ट काव्यपाठ सम्मान,
युवा उत्कर्ष गौरव सम्मान
संस्कार भारती एवं अन्य कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
अखंड भारत सहित कई पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
मेरी रचनाओं को ब्लॉग पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अवनीश त्रिपाठी जी।
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