गुरुवार, 10 मार्च 2016

स्व. रामानुज त्रिपाठी जी का नवगीत

ठीक है मरुस्थल में मेघों को बो देना,
किन्तु आँधियों के पदचिह्न खो न जाएँ।


सागर मंथन के
बाद जिसे पाया है
बूढा दिन धूप की
तस्वीर साथ लाया है।

जड़ देना कील से नंगी दीवार पर
जीवित हैं इसमें अमृत की कथाएं।

रह गए अधूरे
जिनके अकथ किस्से
बांधकर पंखों में
दुःख दर्द के हिस्से

लौटेंगे नीड़ पर भूले भटके पंछी
लेकर नूतन उड़ान की प्रथाएं।

महाकाल ने सौंपी
संभ्रम की सत्ताएं
मरघट में जुट आईं
किन्तु अर्थवत्तायें

पढ़कर मौत का भूगोल खोलकर पन्ने
हंस हंस के मानचित्र रच रहीं चिताएं।

स्व रामानुज त्रिपाठी।
नवगीत संग्रह- यादों का चन्दनवन से साभार।

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