जिस नारी के त्याग-तप में परिलक्षित होता है भगवान
आज उसी नारी का खतरे में है अस्तित्व और सम्मान।
यूँ तो घर-घर पूज रहे हैं दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती सब
फिर भी अबला की चीखों से गूँज रहा है सकल जहान।
अतिवादी मानव ने किया है सदियों से नारी का शोषण
मंचों पर भाषण देता है बेटा बेटी एक समान।
कोख में मारे बेटी को,राखी पहनाता शान से
अपने कर्मों की अनदेखी कर बनता है तू अनजान।
माँ ,बहिन ,बेटी,भार्या सब नारी के ही रूप हैं
फिर काम वासना में अँधा हो क्यों बन जाता है शैतान।
सिर्फ दिवस मनाने ,भाषण देने भर से काम नहीं होगा
नारी त्याग करुणा की देवी,दिल से दो इसको सम्मान।
डॉ.दिनेश चंद्र भट्ट
चमोली,उत्तराखण्ड
भारत
अर्थपूर्ण एवं प्रभावी रचना
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