गुरुवार, 10 मार्च 2016

हेमन्त कुमार कीर्ण की रचनाएँ और उन पर समीक्षाएँ- काव्य शिल्पी

शीर्षक:- हम बेहतर कल बनायेगें

युवा भारत की युवा शक्ति हैं
युवा हमारी राहें हैं
युवा तन है युवा मन है
युवा हमारी बाहें हैं
अपने दम पर अपने बल पर
अपनी राह बनायेगें।
पर विश्वास हमें इतना है
हम बेहतर कल बनायेगें।।
छू देगें गर मिट्टी को
मिट्टी सोना हो जायेगी
जला देगें गर दीपक
मिलकर
जगमग दुनिया हो जायेगी
उजड़ा पड़ा है जो यह गुलशन
फिर से इसे सजायेगें।
पर विश्वास हमें इतना है
हम बेहतर कल बनायेगें।।
क्यों कुंठित हो मेरे यारों
क्या खुद पर विश्वास नहीं
गढ दोगे तक़दीर नई
क्या तेरे आगे राह नहीं
मन में ठानो अडिग प्रतिज्ञा
हम सबको दिखलायेगें।
पर विश्वास हमें इतना है
हम बेहतर कल बनायेगें।।
उड़ने दो नभ में जहाजें
सबसे ऊँची उड़ान होगी
जिस पर गर्व करेगी दुनिया
वैसी अलग पहचान होगी
अपने दम पर अपने बल पर
विकसित राष्ट्र बनायेगें।
पर विश्वास हमें इतना है
हम बेहतर कल बनायेगें।।

व्यंग रचना:-
1•
अंदर हर कर्मचारी
घूसखोरी में लुप्त है,
और बाहर लिखा है
यह कार्यालय
भ्रष्टाचार मुक्त है।
2•
केन्द्र से लेकर प्रदेश तक
सरकारों में साझा
गठबंधन है,
मतलब
मुँह में गोस्त
और
माथे पर चंदन है।
3•
सत्ता की ख़ातिर
अजीब जोड-तोड़ है,
यानी
सौ मीटर की दौड़ में
नब्बे मोड़ है।

शीर्षक:- मैं कविता लिखता हूँ।

भावों में उद्गारों में
बेबस की चीत्कारों में
बन कबीर सा फक्कड
गलियों में बाजारों में
ले कलम अपनी हाथों में
फिरा फिरा सा रहता हूँ।
हाँ मैं कवि हूँ, मैं कविता लिखता हूँ।।
मैं ही मीरा बन
भाव लिखा सिंगार लिखा
मैं ही बहन सुभद्रा बन
लक्ष्मीबाई का हुंकार लिखा
पर समाज की नज़रों में
गिरा गिरा सा रहता हूँ।
हाँ मैं कवि हूँ, मैं कविता लिखता हूँ।।
मैं सुर तुलसी जायसी की
एक लम्बी परम्परा हूँ
मैं निराला की लेखनी हूँ
महादेवी सा बिखरा हूँ
गहन विचारों की पीड़ा में
भरा भरा सा रहता हूँ।
हाँ मैं कवि हूँ, मैं कविता लिखता हूँ।।
अंधकार के सन्नाटो में
टिमटिमाता दीप हूँ मैं
जिसे सुन देश रो पड़ा
वह कवि प्रदीप हूँ मैं
अपनों की आलोचनाओं से
घिरा घिरा सा रहता हूँ।
हाँ मैं कवि हूँ, मैं कविता लिखता हूँ।।
जीवन के हर सुख दुख का
मैं परछाईं दिखता हूँ
समाज के हर तबके का
बस सच्चाई लिखता हूँ
सदियों से पीता गरल
मरा मरा सा रहता हूँ।
हाँ मैं कवि हूँ, मैं कविता लिखता हूँ।।

मुक्तक

1:-
ठंड है……अलाव की बात कर
तब आ…… बदलाव की बात कर
जरा देर में…… समझूँगा मैं
पहले…… लगाव की बात कर।
2:-
मेरे देश का आज मंजर देखो
मेरे दोस्त के हाथ खंजर देखो
हम आपस में लडें बिल्लियों की तरह
रोटियाँ बॉट रहे बंदर देखो।
3:-
गमों में भी यारों मुस्कराना तो सीखिए
मुकद्दर की तरह खुद को सजाना तो सीखिए
दिल की बात दिल में ही न रह जाये दोस्तों
दिल की बात जुबाँ पर भी लाना तो सीखिए।
4:-
कब जीवन का अधिकार मिलेगा
कब सपनों का संसार मिलेगा
कब तक पूछूँगा लोगों से यूँ
कब प्यार के बदले प्यार मिलेगा।

संक्षिप्त परिचय:-
हेमन्त कुमार "कीर्ण"
जन्म:-06/01/1987
शिक्षा:- एम•ए•(अंग्रेज़ी), बी•एड•
पेशा:- शिक्षक
पता:- चंदौली उ•प्र•
Email:- hemantkmr386@gmail.com
उपलब्धियाँ:- अनेकों पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ एवं कहानियाँ प्रकाशित,
आकाशवाणी वाराणसी से रचनाएँ प्रसारित

दिनेश पाण्डेय बरौंसा:------
हम बेहतर कल बनायेंगे
युवा भारत की युवा शक्ति हैं
.......आज के युवा क्या नहीं कर सकते बस स्वयं पर विश्वास होने भर की देरी है,  युवाओं के शक्ति को आवाहन देती एक लाजवाब रचना हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय हेमंत जी,👍
वाह्ह्ह्ह् शानदार हास्य व्यंग😊👌
मैं कविता लिखता हूँ....
. एक कवि के भावों को अत्यंत खूबसूरत तरीके उकेरा है आपने अपनी यशस्वी लेखनी से,  बहुत बहुत बधाई💐👌
एवं सभी मुक्तक भी बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण हैं बस सभी मुक्तकों में मात्राभार एक बार अवश्य देख लेवें क्षमा सहित सादर
कुल मिलाकर आपकी रचनाओं में भावनाओं का बहुत ही सुंदर प्रवाह है आपको बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें आदरणीय हेमंत  कुमार जी 😊💐👏🏻👍🏻

सागर प्रवीण भदोही:------
आज पटल पर युवा रचनाकार आदरणीय हेमंत जी की रचनाओं को पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ!!!
हेमंत जी की सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर व् प्रभावशाली लगी
परन्तु आपने जी व्यंग लिखा है वो काबिले तारीफ़ है!!!

मैं कविता लिखता हूँ
भावों में उद्गारों में
बेबस की चीत्कारों में
बहुत ही सुन्दर कविता है पढ़कर भावविह्वल हो उठा
आपके सभी मुक्तक  भी बहुत सुन्दर व् हृदयस्पर्शी हैं!!
सम्प्रति इस सुन्दर व् श्रेष्ठ सृजन हेतु हार्दिक बधाई!!!

अरविन्द अनजान:--------
सबसे ऊँची उड़ान होगी
जिस पर गर्व करेगी दुनिया
वैसी अलग पहचान होगी
अपने दम पर अपने बल पर
विकसित राष्ट्र बनायेगें।
पर विश्वास हमें इतना है
हम बेहतर कल बनायेगें।।
वाह्ह्ह्ह्
सुन्दर देशभक्ति और राष्ट्र प्रेम ,,,राष्ट्र के प्रति अगर देश के 5% लोगो में भी ये भावना आ जाये तो देश विश्व में सबसे आगे हो जायेगा ,,
बहुत सुन्दर भाई ,,,हेमन्त कुमार 'कीर्ण'~जी
👌👌👏👏👏👍👍👍🌹🌺🌷

नीलम श्रीवास्तव-----
आज युवा कवि हेमंत जी  की रचनाओं  को  पटल पर पढने का अवसर मिला  .
पूरी रचनाएं  पढी  
भाव प्रवणता से लेकर शब्द सन्योजन  अति सुंदर और प्रभावशाली  हैं
हम बेहतर कल बनाएँगे --युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली  बहुत  ही  प्रेरणास्पद  रचना  है
मैं कविता लिखता  हूँ-  में एक भाउक  और यशस्वी   कवि का हृदय  बिम्बित  होता  है
व्यन्ग्य रचनाएं  बेहद प्रभावशाली हैं
मुक्तक भी  बहुत  saarthak  है
अन्यथा  न   लें  शिल्प  की dreshti  से मुक्तक  कुछ कमियाँ  हैं बस  मात्रा  भार से  संबंधित .
अंत में  यही कहूँगी कि हेमंत जी  की रचनाएं सत्यं शिवं एवं सुन्दरं  की अनुभूति  कराती हुई  आनन्दित  करने वाली  हैं
इस खूबसूरत प्रस्तुति हेतु  हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ.

विनोद चन्द्र भट्ट गौचर:----
👏👏👏🙏🏻🙏🏻🙏🏻
वाह्ह्ह्ह्ह्ह!!!
आदरणीय हेमन्त कुमार 'कीर्ण' जी की सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण हैं।वाकई आपकी रचनाओं को पढ़कर आनन्द आ गया।भाव सम्प्रेषण लाजवाब है।व्यंग्य रचना तो बहुत ही उम्दा है। शिल्पबद्ध मुक्तक भी बहुत सार्थक हैं।
थोड़ा मापनी में त्रुटि अवश्य है।अभी आप युवा हैं तो निश्चित ही ये कमियाँ दूर हो जायेंगी। आपका भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है।
आपकी भावाभिव्यक्ति को नमन
आपको हार्दिक बधाई व अनन्त मंगलकामनाएं।
     सादर नमन
विनोद चन्द्र भट्ट,गौचर(उत्तराखण्ड)

सुनील त्रिपाठी-------
Vaaaaaah👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
व्यंग रचना:-
1•
अंदर हर कर्मचारी
घूसखोरी में लुप्त है,
और बाहर लिखा है
यह कार्यालय
भ्रष्टाचार मुक्त है।
2•
केन्द्र से लेकर प्रदेश तक
सरकारों में साझा
गठबंधन है,
मतलब
मुँह में गोस्त
और
माथे पर चंदन है।
3•
सत्ता की ख़ातिर
अजीब जोड-तोड़ है,
यानी
सौ मीटर की दौड़ में
नब्बे मोड़ है।
Bahut khoob vyangya likhen hai aaderniya Hemant saader badhaai👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍
अंधकार के सन्नाटो में
टिमटिमाता दीप हूँ मैं
जिसे सुन देश रो पड़ा
वह कवि प्रदीप हूँ मैं
अपनों की आलोचनाओं से
घिरा घिरा सा रहता हूँ।
हाँ मैं कवि हूँ, मैं कविता लिखता हूँ।।
Bahut sunder rachna hui aapki 👍👍
Badhaaai sang naman lekhni ko
!!Sunil Tripaathi !!
Lucknow U.P.

राहुल द्विवेदी स्मित: -----
हेमंत कुमार जी की व्यंग रचनाएँ सटीक वार करती हैं भ्रष्ट तंत्र पर ।
वहीं आगे बढ़ते बढ़ते रचनाओं में भाव तो दीखते हैं किन्तु शिल्प कहीं भ्रमित सा दीख पड़ता है ।
मैं ही मीरा बन
भाव लिखा सिंगार लिखा...
अब इस स्वरूप में मैं भ्रमित हूँ यह हिंदी की कौन सी शैली है । मैंने यह लिखा तो सुना किन्तु मैं यह लिखा अलग व नया प्रयोग है जो हिंदी को भी चौंकने पर विवश करेगा ।
अलाव,बदलाव् के साथ लगाव काफिया भी समझ नहीं आया ।
मंजर, खंजर के साथ बन्दर समांत/काफिया भी विचलित है ।
प्रयास अच्छा है किन्तु साहित्य यात्रा का यह पहला पड़ाव जहां से अभी आपको बहुत दूर जाना है । अहंकार से दूर हर पल सीखने की इच्छा आपको मंजिल तक अवश्य पहुंचाएगी ।
👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏

मनोज मानव------
हेमन्त जी की रचनाएँ एक नई उम्मीद जगाती हैं
प्रथम रचना थोड़े से प्रयास में ही 16,14 मात्राभार के साथ लावणी छंद में ढल सकती है और एक बेहद शानदार गीत का रूप ले सकती है
दूसरी रचना - सुंदर छंद मुक्त  व्यंग
तीसरी रचना -- सुंदर भावपूर्ण प्रयास
मुक्तक
पहला मुक्तक -- मात्राभार सभी पंक्ति में एक नही है
दूसरा मुक्तक - मंजर खंजर के कारण समांत अंजर हो गया जो बन्दर में नही निभाया गया
तीसरा मुक्तक -- मुक्तक एक लय / मापनी / छंद में हो तो अति उत्तम
चौथा मुक्तक - सुंदर प्रयास
आपके भाव बहुत ही सुंदर है बस इन भावों को शिल्प मिलने की देर है आदरणीय हेमन्त जी में भविष्य की बेहतरीन सम्भावनाएं नजर आती है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें