मंगलवार, 1 मार्च 2016

डॉ अर्चना गुप्ता- काव्य शिल्पी समूह में रचनाएँ और उन पर टिप्पणियाँ

संक्षिप्त परिचय--

नाम --डॉ अर्चना गुप्ता
शिक्षा -M.Sc (Physics) , M.Ed (Gold Medalist) , Ph.D
गृह नगर - Moradabad (U.P.)
Blog...www.itsarchana.com
E Mail- me@itsarchana.com
जन्म तिथि --15 जून
सम्प्रति -  प्रतिष्ठित समाचार पत्र ,पत्रिकाओं में रचनाएँ(मुक्तक ,ग़ज़ल, कवितायें)  प्रकाशित ,एक साझा काव्य संग्रह (उत्कर्ष काव्य संग्रह ), नव मुक्तक काव्य संकलन , साहित्य गौरव सम्मान (युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच2015 )।
लेखन विधा -गीत /ग़ज़ल / छंदमय काव्य /छंदमुक्त काव्य/गद्य लेखन ।
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ग़ज़ल-एक

मानवता का महँगा जेवर बेच दिया
खुद को ही लालच में आकर बेच दिया

मानव ने काटे जंगल अपने सुख को
धरती का हरियाला बिस्तर बेच दिया

देख न पाये सुंदरता तुम अंदर की
हीरा तभी समझ कर पत्थर बेच दिया

लोगों ने क्यों अपना नाम कमाने को
खुद्दारी के जैसा तेवर बेच दिया

आज छुपाने को गम ,आँखों का हमने
आँसूं से ही भरा समंदर बेच दिया

यादों से उनकी जो  महल बनाया था
वही उन्होंने कहकर खंडर बेच दिया

भूल 'अर्चना 'मात पिता को बच्चों ने
उनके सारे सपनों का घर बेच दिया
डॉ अर्चना गुप्ता

ग़ज़ल-दो
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देखकर इक झलक ही नशा हो गया
बेकरारी का फिर सिलसिला हो गया

उनकी कसमें निभाना हमारे लिए
दर्द को आँख में थामना हो गया

दिख रहा खुद में उनका ही चेहरा हमें
आज दर्पण को जाने ये क्या हो गया

पहली पहली घिरी जो घटा  सावनी
देख कर दिल मेरा बावरा हो गया

वो जो पहलू में थे कल तलक उनसे आज
ज़िन्दगी मौत का फासला हो गया

बंदिशों में छिपा हित  है औलाद का
आज जाना वो जब खुद पिता हो गया

'अर्चना 'दर्द इतना पिया उम्र भर
अश्क का क़र्ज़ सारा अदा हो गया

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)

ग़ज़ल-तीन

कैसे विदा करुँगी बेटी ,रख पलकों पर पाला है
सोच सोच कर ही आँखों को ,नम अपनी कर डाला है

खुद ही संभाला है खुद को ,लाख ठोकरें खाकर जग में
अंधेरी राहों में हमने  ,  दिल से किया उजाला है

जीवन की झोली से हमने ,अनुभव के मोती चुनकर
आज पिरोई फिर से देखो ,एक ग़ज़ल की माला है

डोर प्रीत की लेकर के ही ,रिश्ते सारे है बँधते
घर ही वो मंदिर जहाँ नहीं ,नफरत का कोई आला है

इक समान दिखते सबके तन ,लाल लहू ही है सबका
मालिक भी एक ,अलग लेकिन मस्जिद चर्च शिवाला है

त्याग ,प्यार का पाठ पढेगा, कैसे आज सुनो बच्चा
जिसको मिले नहीं रिश्ते बस, आया ने ही  पाला है

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई  एक जहाँ पर हो जाते
जगह सुना हमने ऐसी तो ,हर कोई मधुशाला है

रोज अर्चना इस जीवन ने ,हमें फँसाने की खातिर
गम औ सुख के धागे लेकर ,बुना अनोखा  जाला है

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)

ग़ज़ल-चार

न होती सरल  ज़िंदगानी है यारो
मगर सबको ये लगती प्यारी है यारो

नहीं  हाँ में हाँ हर किसी की मिलाते
यही देखो हम में बुराई है यारो

मिली है नज़र आज उनसे हमारी
तभी लग रही रुत गुलाबी है यारो

दिये जख्म जब से हमें अपनो ने ही
गयी दूर हमसे हँसी भी है यारो

नशा ही मुहब्बत का ऐसा हुआ है
समझने लगा जग शराबी है यारो

हमें ले गयी साथ यादों में उनकी
हवा ये चली आज कैसी है यारो

यहाँ जीना पड़ता है मरने की खातिर
यही ज़िन्दगी की कहानी है यारो

जगह 'अर्चना' लोगों ने दिल में दे दी
यही आज तक की कमाई है यारो

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र )

ग़ज़ल-पाँच

राहों की शिकायत क्यों मंज़िलों से करते हो
क्यों न हार का स्वागत हौसलों से करते हो

इस तरह बदल ली है अपनी आपने सीरत
झूठ की वकालत भी आइनों से करते हो

हाथ कुछ न आया औ चैन भी गँवा बैठे
होड़ इतनी क्यों ज्यादा दूसरों से करते हो

दूर तुम करोगे इस ज़िन्दगी के तम कैसे
रौशनी ही जब इसमें जुगनुओं से करते हो

दिख रही हैं बाहर से खोखली ही दीवारें
बात अर्चना फिर क्या चौखटों से करते हो

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उ प्र)

संजीवमिश्र पीलीभीत: -------
आदरणीय डा. अर्चना जी,
आपकी अद्भुत गजलों का वंदन अभिनंदन। सरल सहज कहन आपकी गजलों की विशेषता है। कैसे बिदा करूंगी बेटी, गजल ने विशेष प्रभावित किया। आपके स्वर्णिम भविष्य की मंगलकामनाओं के साथ- संजीव मिश्रा - पीलीभीत।
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शैलेश अग्रवाल : ---------
आदरणीया डा. अर्चना जी
आपकी सभी रचनाएँ बहुत ही मनभावन हैं पढ़कर आनंद आ गया ।।

कैसे विदा करुँगी बेटी वाली रचना के
दुसरे शेर में कुछ सुधार हो सकता है क्योंकि वहाँ मात्राभार अधिक होने के कारण लयभंग हो रही है ।।
बाकी रचना अतिउत्तम
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अरविन्द अनजान: -------
✒📚काव्य शिल्पी📚✒
यादों से उनकी जो  महल बनाया था
वही उन्होंने कहकर खंडर बेच दिया
वाह्ह्ह्ह्ह्
भूल 'अर्चना 'मात पिता को बच्चों ने
उनके सारे सपनों का घर बेच दिया
👌👌👌👍👍👏👏
👏👏👏
कमाल की गजल हुई है ,, वाह्ह
कैसे विदा करुँगी बेटी ,रख पलकों पर पाला है
सोच सोच कर ही आँखों को ,नम अपनी कर डाला है
👌👏👏👏👍👍 वआह्ह्ह्ह्
खुद ही संभाला है खुद को ,लाख ठोकरें खाकर जग में
अंधेरी राहों में हमने  ,  दिल से किया उजाला है
,,,युग्म की पहली पंक्ति में 15, 16  पर यति है ,, जिससे लय गड़बड़ा रही है जी
जीवन की झोली से हमने ,अनुभव के मोती चुनकर
आज पिरोई फिर से देखो ,एक ग़ज़ल की माला है
वाह्ह्ह्
जोरदार युग्म 👌👌👌👍👍👍

डोर प्रीत की लेकर के ही ,रिश्ते सारे है बँधते
घर ही वो मंदिर जहाँ नहीं ,नफरत का कोई आला है
,,,इस युग्म में लय में कुछ रुकावट सी लग रही है जी

इक समान दिखते सबके तन ,लाल लहू ही है सबका
मालिक भी एक ,अलग लेकिन मस्जिद चर्च शिवाला है
👏👏👌👌👍
अच्छा भाव इस युग्म को और प्रखर बनाया जा सकता है जी.
त्याग ,प्यार का पाठ पढेगा, कैसे आज सुनो बच्चा
जिसको मिले नहीं रिश्ते बस, आया ने ही  पाला है
👏👏👍👌👌
सुन्दर युग्म ,,,,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई  एक जहाँ पर हो जाते
जगह सुना हमने ऐसी तो ,हर कोई मधुशाला है
👏👏👏
सुझाव
*जगह सुनी इस जग में केवल, एक मगर मधुशाला है ।

रोज अर्चना इस जीवन ने ,हमें फँसाने की खातिर
गम औ सुख के धागे लेकर ,बुना अनोखा  जाला है
वाह्ह्ह् आदरणीया ,,सुन्दर गीतिका हुई है ,,, बस मकते में एक सुझाव जो एकदम से आ रहा है देखिएगा ,,,
....
सुख-दुख के धागों को लेकर, बुना अनोखा ....
👌👌
वो जो पहलू में थे कल तलक उनसे आज
ज़िन्दगी मौत का फासला हो गया
👌👌👏👏
बंदिशों में छिपा हित  है औलाद का
आज जाना वो जब खुद पिता हो गया
👍👍🌷🌷🌹🌹👌👏👏
'अर्चना 'दर्द इतना पिया उम्र भर
अश्क का क़र्ज़ सारा अदा हो गया
बहुत उत्तम गीतिका हुई है ,,, सभी युग्म प्रभावशाली हैं ,,,
वाह्ह्ह्ह्
आदरणीया डा. अर्चना जी
आपकी सभी रचनाएँ बहुत ही मनभावन हैं पढ़कर आनंद आ गया

विजय नारायण सिंह:--------
आदरणीया डा. अर्चना जी,
आपकी बेहतरीन  गजलों का रसास्वादन करने का मौका मिला । एक से बढकर एक गजलें हैं । सरल सहज कहन और जीवन के अनुभव आपकी गजलों में दिखाई देते हैं । आपके स्वर्णिम भविष्य की शुभकामनाओं के साथ-
विजय नारायण सिंह "बेरुका"
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दिनेश कुशभुवनपुरी,बरौंसा:---------
वाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्
आदरणीया डॉ.अर्चना गुप्ता जी अद्भुत लेखन है आपका, एवं आपकी प्रत्येक रचनाएँ भावनाओं से ओत-प्रोत मन को छूने वाली जिसे मन भावबिभोर हो उठा । आपको सादर बधाई एवं नमन आपकी लेखनी को 🙏🏼🙏🏼🙏🏼👏🏻👏🏻👏🏻
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विनोद चन्द्र भट्ट गोचर:--------
👏👏
🌷वाह्ह्ह्ह्ह्ह!!!🌷
आदरणीया डॉ अर्चना गुप्ता जी!

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण व लाजवाब रचनाएँ।सभी अनुपम हैं। पढ़कर आनन्द आ गया।
वाहह्ह्ह!!वाह्ह्ह!!!
आपकी बेहतरीन भावाभिव्यक्ति को नमन!
सम्प्रति आपको हार्दिक बधाई व बहुत-बहुत मंगलकामनाएं।

Dheeraj Srivastwa: -------------
✏📚 काव्य शिल्पी✏📚

कैसे विदा करूँगी बेटी, रख पलको पर पाला है!
सोच सोचकर ही आँखों को, नम अपनी कर डाला है।

वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह आद.दी! वाह्ह्ह! अति सुंदर रचनाएँ हैं आपकी! सुंदर सरल और तरल! कथ्य प्रभावी हैं! प्रस्तुत ग़ज़लों के सभी शे'र सुंदर बन पड़े हैं! निश्चित तौर पर आपका लेखन प्रभावित करता है! शिल्प पर ऊपर आदरणीय मित्रों ने सार्थक चर्चा की है!
सम्प्रति मेरी हार्दिक बधाई एवं सादर नमन स्वीकार करें!
---- धीरज श्रीवास्तव
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