बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

अवनीश त्रिपाठी- नवगीत

चीख चीख कर मरी पिपासा
***********************

सूनी आँखों में सपनों की
अब सौगात नहीं
चीख,तल्खियों वाले मौसम
हैं,बरसात नहीं।।

आँख मिचौली करते करते
जीवन बीत गया
सुख दुःख के कोरे पन्नों पर
सावन रीत गया,

द्वार देहरी सुबह साँझ सब
लगते हैं रूठे
दिन का थोड़ा दर्द समझती
ऐसी रात नहीं।

शून्य क्षितिज का अर्थ लगाते
मौसम गुजर गए,
बूँदों की परिभाषा गढ़ते
बादल बिखर गए,

रेत भरे आँचल में अपने
सावन की बेटी,
सूखे खेतों से कहती है
अब खैरात नहीं।।

दीवारों के कान हो गए
अवचेतन-बहरे,
बात करें किससे हम मिलकर
दर्द हुए गहरे,

चीख-चीख कर मरी पिपासा
भूख चली पीहर,
प्रत्याशा हरियर होने की
पर ज़ज़्बात नहीं।।

---- अवनीश त्रिपाठी
गरएं सुलतानपुर,उ प्र
9451554243

6 टिप्‍पणियां: