कलम के मेरे हर अल्फ़ाज़ का इतना फ़साना था,
लिखूं मैं कुछ भी बस इक नाम तेरा यार आना था।
कि बाद-ए-हिज़्र मुझसे अश्क़ मेरे कह रहे हमदम,
मुझे भी भूल जाना था तुझे भी भूल जाना था।
उड़ा कर नींद मेरी ख्वाब में कहता था आऊँगा,
न मिलने का सनम के रोज का अच्छा बहाना था।
सवालों पे मेरे खामोश क्यूँ संग - ए - खुदा है तू,
नहीं मालूम था जो गर तुझे मुझको बताना था।
कहाँ तस्कीन मिलती दिलजलों को इस जमाने में,
सभी दर्द- ए -दिलों का मयकदे में बस ठिकाना था।
बता " बेनाम " कैसे जीतता मैं इस जहां को जब,
लकीरों में मेरी लिक्खा खुदी से हार जाना था।
------------------------------------------------------
परिचय:--
नाम:- संजू बाबा "बेनाम"
पिता :- स्व श्री स्वामी नाथ मौर्य
माता - श्रीमती निर्मला देवी
जन्मतिथि :- ०५ / ०६ / १९८९
शिक्षा : स्नातक, अवध विश्वविद्यालय, फैज़ाबाद
संप्रति : प्राइवेट जॉब
पता : म नं २२८७/९, विवेकानंद नगर,
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
संपर्क नं : 9839205494, 8115296666
ई मेल : sanjay.perfect100@gmail.com
खूबसूरत ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंआभार आदरणीय
हटाएं