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बड़ी अजीब है इस क़ायनात की महफ़िल।
कहीँ निजात कहीँ मुश्किलात की महफ़िल।।
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कहीँ रोती हुई खुशियों की सहर और कहीं।
मुस्कुराती हुई दर्दो की रात की महफ़िल।।
🌿🍀
वो फ़रेबों की नुमाइश वो मखमली सूरत।
वो गुलबदन है किसी वारदात की महफ़िल।।
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ये बहारें ये नज़ारे तो चार दिन के हैं।
आख़िरश ज़िंदगी जश्ने वफ़ात की महफ़िल।।
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यूँ समझ लो कि बिसातें बिछीं अदावत की।
नज़र आती है फ़क़त इख़्तलात की महफ़िल।।
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शक़्ल इंसान की करतूत दरिंदों जैसी।
कंकरीटों के शहर जंगलात की महफ़िल।।
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बदगुमानी के नशे में हसीन रातों को।
कौन कहता है"विजय"एहतियात की महफ़िल।
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विजय बागरी"विजय"
बहुत सुन्दर जीवन की सच्चाई को बयाँ करती कविता
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