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सुवासिनी सुबोधिनी सुदीप्ति प्रात वंदिता|
समस्त लोक की सुनो अशुद्धि द्वेष खंडिता||
अहो! कला विवेक बुद्धि ज्ञान मान दायिनी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||
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बसो कि कण्ठ में तुम्हीं सुगीत का बहाव हो|
गहो कि बुद्धि में तुम्हीं सुबोध का प्रवाह हो||
सुलोचना सुभाषिनी तरंग ताल स्वामिनी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||
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अभेद ज्ञान का तुम्हीं अकाट ज्योति बंध हो|
समस्त सृष्टि की तुम्हीं सुभाव पुष्प गंध हो||
स्वंत्रत भाव निर्झरी सुश्वेत वस्त्र धारिणी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||
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अबाध नेह की तुम्हीं सुगुच्छ पुष्प कुञ्ज हो|
कराल रात्रि में तुम्हीं सुगाह्य प्राण पुंज हो||
सुपंकजा सुशोभिनी सुवेद हस्त धारिणी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||
[पञ्चचामर छंद]
😊श्वेता राय😊
देवरिया उत्तर प्रदेश
उत्तम छ्न्दबद्ध रचना , इनकी और कुछ लिखा है तो पढना चाहता हु
जवाब देंहटाएंसुरेश पित्रे , ठाणे , महाराष्ट्र