कवितालोक
------------- दिनांक-25/10/2016
कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ के तत्वावधान में काव्यशाला का आयोजन महोना के चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन में व्यवस्थापक डॉ० सी.के. मिश्र जी के सौजन्य से व संस्थान के संरक्षक श्रीओम नीरव जी के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार डॉ. अजय प्रसून जी ने की और संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में महेश अष्ठाना जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. अशोक अज्ञानी जी तथा मिज़ाज़ लखनवी जी उपस्थित रहे।
काव्यशाला का प्रारम्भ मिज़ाज़ लखनवी जी की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ । इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया ।
कार्यक्रम का सबसे रोचक दौर तब रहा जब विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में तौहीद समानी (कक्षा-१०), महविश शेख (कक्षा-९), गौरव चौरसिया (कक्षा-८) तथा रिया मिश्रा (कक्षा-८) आदि प्रमुख रहे ।
साथ ही कार्यक्रम के दौरान मिज़ाज़ लखनवी जी को 'गीतिका लोक रत्न सम्मान' और डॉ अशोक अज्ञानी जी को 'कवितालोक रत्न सम्मान' से सम्मानित भी किया गया ।इस अवसर पर :-------------
डॉ अजय प्रसून जी ने 'एक तीखी कटार है यारों, ये ग़ज़ल धारदार है यारों । मेरी ग़ज़ल ने जो भी बाँटा है, वो मेरे मन का प्यार है यारों ।।'
ओम नीरव जी ने 'सांवरे न बाँसुरी की धुन पे रहे भरोस, कालिये भी बाँसुरी बजा के डसने लगे ।'
महेश अष्ठाना 'प्रकाश' जी ने 'वंदे मातरम, वंदे मातरम, करें शहीदों को नमन। '
डॉ अशोक अज्ञानी जी ने 'गांव का ताल, अपनी दुर्दशा पर रोता है, लोग गंगा को बचाने की बात करते हैं ।'
मिज़ाज़ लखनवी जी ने 'जिंदगी दे रही तलाक मुझे, मौत से अब निकाह कर लेंगे ।'
राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने ' जग के लोभी दांवपेंच मैं बिल्कुल नहीं समझता हूँ , मैं सूखा सागर सपनो का फिर भी बहुत बरसता हूँ ।'
उमाकान्त पांडे जी ने 'पलकों में मैं समेट लूँ वो बीते हुए पल, वो जिन्दी के पल मेरी वो जिंदगी के पल ।'
गौरव पाण्डे 'रूद्र' ने 'मौत से तो रूबरू होते रहे हम हर दफ़ा, जिंदगी ने और कुछ लिक्खी कहानी रात भर ।'
नीलम भारती ने ' चले आओ सनम अब तुम विरह के गीत गाती हूँ, बताता भोर है मुझको बुझे दीपक की बाती हूँ ।'
मुकेश कुमार मिश्र जी ने ' सर्वत्र है दैवीय सम्पदायें धरा से यहाँ स्वर्ण ही हैं उगाते । '
मन्जुल मन्ज़र लखनवी जी ने ' किया रचनाओं में तूने जमाने का जो चित्रण है, वहीं साहित्य तेरा आज इस दुनिया का दर्पण है ।'
विपिन मलीहाबादी ने 'बात ही बात में याद आने लगा, दिल तड़प कर उसी को बुलाने लगा ।'
भ्रमर बैसवारी जी ने 'वीर जवानों के दुश्मन को उसके घर में मारा है, भारत की जनता वीरों का लगा रही जयकारा है ।'
संदीप अनुरागी जी ने 'सरकार दे लुटाय तौ जानौ की नरेगा, मजदूरौ न चोटाय तौ समझौ नरेगा । सरकार की रकम का खाय खाय के, परधान जी मोटाय तौ जानौ कि नरेगा ।।'
सुन्दर लाल सुन्दर जी ने 'जन्मभूमि जननी की रक्षा हेतु जा रहा माँ, पूज्यनीय माँ हमारी धैर्य ना गंवाइयो ।'
अनिल कुमार श्रीवास्तव 'व्यथित' जी ने 'ये सुरमई अक्स हमें सोने नही देती, ये हमारा जज्बा तुम्हे खोने नहीं देता ।'
केदार नाथ शुक्ल जी ने 'दुम को सदा दबाने वाले यदि दुमदार नहीं होते , तो आतंकवादियों के पग सीमा पार नही होते ।'
भैरो नाथ पांडे जी ने 'रात है जगमग दिखे फिर भी अँधेरे, यह दिवाली तुम मना लो साथ मेरे ।'
आशुतोष मिश्र जी ने 'लिखते-लिखते लिख गया, दिल का ये उद्गार । सच्चा केवल प्रेम है, झूँठा है संसार ।'
योगेश चौहान जी ने 'वीर शहीदों की आत्मा हर्षित हो नाच रही होगी, स्वर्गलोक में जनगणमन की पंक्ति बाँच रही होगी ।'
आशुतोष 'आशु' जी ने 'फूल को खार करने लगे हैं, सिर्फ अँधियार करने लगे हैं ।'
पढ़कर खूब तालियां व वाह-वाही बटोरी ।
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