डॉ. लालता प्रसाद पाण्डेय 'साहित्य सेवा संस्थान' मिल्कीपुर, फैज़ाबाद के सौजन्य से एक कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन ‘ राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका लखनऊ' मे वरिष्ठ कवि एवं कवितालोक के संस्थापक आचार्य ओम नीरव जी की अध्यक्षता और उमाकान्त पाण्डेय के संयोजन और संचालन में सम्पन्न हुआ। समारोह में राष्ट्रीय कवि एवं मंचो के प्रसिद्ध सञ्चालक कमलेश मौर्य 'मृदु'मुख्य अतिथि ,प्रमुख अतिथि जबलपुर म.प्र. शासकीय महा विद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीकृष्ण तिवारी और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे जी,प्रसिद्ध मंच सञ्चालक एवं ओज कवि आदरणीय राम किशोर तिवारी जी,ओज कवि आदरणीय केदार नाथ शुक्ल ,डॉ. अशोक अज्ञानी जी,श्री सुनील कुमार बाजपेयी जी ,सुश्री निवेदिता श्रीवास्तव जी,डॉ मंजु श्रीवास्तव जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। समारोह के प्रथम चरण में संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ विमलासन पाण्डेय और कोषाध्यक्ष सुरेन्द कुमार पाण्डेय ने उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंटकर मंचस्थ कवियों को सम्मानित किया। उसके बाद अध्यक्ष आचार्य ओम नीरव और श्री कमलेश मौर्य 'मृदु' जी विशिष्ट अतिथि आ डॉ अमित दुबे जी और केदार नाथ शुक्ल जी द्वारा कुल 22 कवियों को , साहित्य भूषण और काव्य भूषण सम्मान से विभूषित किया।कार्यक्रम में कवि अब्दुल हफ़ीज खाँ की कृति'मेरी कविता मेरी सोच' का लोकार्पण हुआ। सम्मान समारोह एवं कवि सम्मेलन का संचालन संस्था के सचिव /संयोजक उमाकान्त पाण्डेय ने किया।
कवि सम्मेलन का प्रारम्भ ओज कवि केदारनाथ शुक्ल जी की वाणी वन्दना से हुआ।
श्रृंगार की मीठी फुहार छिड़कते हुए कवि संजय साँवरा ने
अधरों से कोई जाम पिलाये तो क्या करें।
पानी ही स्वयं आग लगाये तो क्या करें।
पढा तो पंडाल में श्रृंगार की धारा बहने लगी
कवि अशोक अज्ञानी ने पढ़ा
रास लीला कृष्ण की लिखना बहुत आसान लेकिन,
गोपियों के आसुँओं का मोल कोई क्या लिखेगा।
हास्य कवि सन्दीप अनुरागी ने जब पढा
यतना जादा चोटान छोटे सब खाना पानी भूला है।
भोरहे शीशा मा मुंह देखिस तौ हनोमान कस फूला है।
तो हँसी का फौव्वारा छूट गया।
कवि सम्मेलन की दिशा बदलते हुए बाराबंकी के डॉ शर्मेश शर्मा ने जब देश प्रेम की पंक्तियाँ
न लिक्खेंगे अगर शर्मेश दर्पण बोल उट्ठेगा,
दूध को दूध औ पानी को पानी कौन लिक्खेगा।
तो श्रोता रोमांचित हो उठे।
काव्य मंच को ग़ज़ल की मिठास की ओर मोड़ते हुए मिज़ाज़ लखनवी ने पढा
चला गया भी अगर छोड़के मैं ये दुनिया।
मिज़ाज़ बनके रहूँगा वजूद में सबके।।
हास्य कवि अजय प्रधान ने
चलना ही जिंदगी है मेले ठेले में चलो,
पर रेलों में चलो तो कफ़न बाँध के चलो।
कवि मुकेश मिश्र ने
कहूँगा इसे आज दुर्भाग्य ही जो नहीं देश में सर्व स्वीकार हिंदी।
सुनील बाजपेयी ने पढ़ा-गाँव गया था कुछ दिन पहले, बीबी बच्चों को भी संग ले।
उनको अपना गाँव दिखाने, खुद भी देखा इसी बहाने।
कवि कुमार तरल ने पढ़ा-
जो शीतल चाँदनी बनकर उतर आते हैं धरती पर।
सुबह की रोशनी बनकर बिखर जाते है धरती पर।
कवि हरीश लोहुमी जी ने पढ़ा
विष धर सम हर व्यक्ति है, उर-उर गरल प्रधान।
पुनः कीजिए हे प्रभो!मान सहित विष पान।
मंचो के संचालक आदरणीय राम किशोर तिवारी जी ने वीरगाथा काल भक्ति काल रीतिकाल से लेकर छायावादी युग तक हिंदी पर सवैया छंद पढ़कर सबका मन मोह लिया।
डॉ श्री कृष्ण ने
किससे कहें कि तुम चलो मेरे जुलूस में ,
इन बस्तियों के लोग सब नामर्द हो गये।
ओज कवि आदरणीय केदार नाथ शुक्ल ने
उचित बात भी पक्षपात बस टलने लगती है।
तभी हमारी रुकी लेखनी चलने लगती है।
मुख्य अतिथि श्री कमलेश मौर्य मृदु ने समसामयिक विषय पर कविता पढ़ी कि
हमार मन करे हम बाबा बनि जाई।
अध्यक्ष आचार्य ओम नीरव जी ने सुनाया -
सत्य ने सिर उठाया तनिक जो कहीं,
झूठ की संगठित हो गईं टोलियाँ।
इसके अतिरिक्त कार्यक्रम में
सुश्री निवेदिता श्रीवास्तव,श्री योगेश चौहान, श्री मनीष मगन,श्री बिपिन मलिहाबादी,हास्य कवि श्री चेतराम अज्ञानी,सहित कई कवियों ने काव्य पाठ किया।कार्यक्रम का समापन कार्यकारी अध्यक्ष डॉ विमलासन पाण्डेय के आभार ज्ञापन से हुआ।
बहुत सुंदर ! समाचार को सुरुचिपूर्वक प्रकाशित करने के लिए आभार !
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