03 सितम्बर 2017
लखनऊ। 'लघु पत्रिकाओं ने हिन्दी साहित्य को वैचारिक दृष्टि से समृद्ध किया है। इस कारण साहित्य इन पत्रिकाओं का ऋणी है।'
यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मण केडिया ने कहीं। श्री केडिया लखनऊ प्रेस क्लब में व्हाट्सअप ग्रुप 'मणिका' द्वारा आयोजित 'सामाजिक जड़ता और समकालीन साहित्य के बीच लघु पत्रिकाओं की भूमिका' विषयक संगोष्ठी और पत्रिका विमोचन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।
संगोष्ठी की शुरुआत करते हुये युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने कहा- 'हिन्दी साहित्य का गंभीर पाठक लघु पत्रिकाओं की ओर ललचाई दृष्टि से देखता है। इन पाठकों की खुराक इन्हें पढ़ने के बाद ही पूरी होती है।'
साहित्यकार बृजेश नीरज ने कई गम्भीर मुद्दे उठाते हुये कहा कि बाजार के खतरों को बाजार के हथियार से ही पराजित किया जा सकता है।
सुलतानपुर के चर्चित युवा साहित्यकार ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' ने कहा- 'लघु पत्रिकायें न उच्च वर्ग की जड़ता को प्रभावित कर सकती हैं न निम्न वर्ग की जड़ता को तोड़ सकती हैं। मध्यवर्ग इनका कार्य क्षेत्र है यहां ये सफल हैं।'
बांदा के आलोचक उमाशंकर परमार ने कहा कि 'हिन्दी साहित्य के अधिकांश बड़े साहित्यकार लघु पत्रिकाओं की उपज हैं।'
इससे पूर्व आरा (बिहार) से आये 'मणिका' के सम्पादक सिद्धार्थ वल्लभ ने आगंतुको का स्वागत करते हुये 'मणिका' के बारे में जानकारी दी। उपस्थित अतिथियों ने जनसरोकारों की पत्रिका मणिका के प्रवेशांक का विमोचन किया।
संचालन मनोज शुक्ल ‘मनोज’ ने तथा अध्यक्षता मधुकर अस्थाना ने की। आभार ज्ञापन गोरखपुर की कवयत्री और मणिका की सह सम्पादक प्रियंका पांडेय ने किया।
समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार कैलाश निगम, मंतव्य के सम्पादक हरेप्रकाश उपाध्याय, निकट की संपादक प्रज्ञा पाण्डेय, प्रद्युम्न कुमार सिंह, प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा, सौरभ श्रीवास्तव, व्यंग्यकार अनूपमणि त्रिपाठी समेत अनेक प्रमुख साहित्यसेवी उपस्थित रहे।
मणिका के संस्थापक सदस्यों में से एक ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' ने पत्रकारों को बताया कि लगभग एक वर्ष पूर्व फेसबुक पर आपस में जुड़े साहित्य के कुछ गंभीर पाठकों ने व्हाट्सअप पर 'मणिका' नाम से एक ग्रुप बनाया। कुल्लू (हिमांचलप्रदेश) के गणेश गनी, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) की प्रियंका पांडेय और आरा (बिहार) के सिद्धार्थ वल्लभ के नेतृत्व में चल रहे इस ग्रुप में धीरे धीरे देश भर के प्रमुख रचनाकार/ आलोचक/ सम्पादक जुड़ गये। सबने मिलकर साहित्य की गंभीरता व वैचारिक प्रतिबद्धता को स्पष्ट रखते हुये जनसरोकारों से जुड़ी एक पत्रिका निकालने का मन बनाया। तीन चार महीने की तैयारी के बाद आज यही 'मणिका-1' के रुप में हमारे सामने है। मणिका के पहले कार्यक्रम के रुप में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से शुरु हुआ विमोचन का यह सिलसिला देश के कई राज्यों के प्रमुख शहरों तक चलेगा।
साहित्य एक विशद अनुभूति है और वह अनुभूति मानव मन में बसी है.....आइए महसूस करें उस अनुभूति को....😊
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