कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ के सौजन्य से हिन्दी दिवस पर ‘काव्य-गंगोत्री’ सामारोह का आयोजन 15वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका लखनऊ में प्रो. उषा सिन्हा पूर्व अध्यक्ष भाषा विज्ञान विभाग लखनऊ विश्व विद्यालय की अध्यक्षता और संस्थाध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में अनागत काव्यधारा के प्रवर्तक डॉ. अजय प्रसून और विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे एवं साहित्यिक संस्था सुंदरम के अध्यक्ष नरेंद्र भूषण उपस्थित रहे। आयोजन के प्रथम चरण में आमंत्रित चौबीस हिन्दी सेवी रचनाकारों को उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंट कर ‘साहित्य गंगोत्री’, ‘काव्य गंगोत्री’ और ‘ग्रंथ गंगोत्री’ मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। इस सत्र का संचालन कविवर सुनील त्रिपाठी ने किया। दूसरे चरण में कवितालोक के पिछले आयोजन की स्मारिका ‘गीतिका गंगोत्री’ का लोकार्पण अध्यंक्ष, मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया, जिसे उपहार स्वरूप भेंट करने वाले सुभाञ्जलि प्रकाशन के संचालक डॉ. सुभाष चन्द्र को 'ग्रंथ गंगोत्री' सारस्वत सम्मान से विभूषित किया गया। काव्य गंगोत्री के तीसरे चरण में हिन्दी दिवस पर काव्यपाठ का क्रम प्रारम्भ हुआ जिसमें रचनाकारों ने हिन्दी की विभिन्न विधाओं में मनोहारी काव्यपाठ प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन संस्थाध्यक्ष ओम नीरव ने किया। वाणी वंदना से काव्य-गंगोत्री का प्रारम्भ करते हुए ओज कवि उमाकान्त पाण्डेय ने इन पंक्तियों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया-
माँ शरदे करूँ मैं शत-शत तुम्हारा वंदन,
सब काट दो मनस के जितने पड़े हैं बंधन।
श्याम फतनपुरी ने गीतिका के माध्यम से हिन्दी-प्रयोग का सार्थक संदेश देते हुए कहा-
विश्व-पटल पर श्याम, बढ़ेगा भारत अपना,
हिन्दी में तुम अगर, राष्ट्र व्यवहार करोगे।
पद्मकांत शर्मा प्रभात ने हिन्दी के गौरव की बात को कुछ इसप्रकार व्यक्त किया -
जन जन के प्राण प्राण में है बसी हुई
हिंदी हमारे राष्ट्र का गौरव निशान है
सौरभ टण्डन 'शशि' की इन पंक्तियों को सराहा गया
प्रेम घुला हर शब्द में, रखना मुझे सँभाल,
भारत की पहचान हूँ, सुन हिन्दी के लाल ।।
डॉ अशोक अज्ञानी ने इन पंक्तियों ने श्रोताओं को वाह-वाह करने पर विवश कर दिया-
हिन्दी का वही हाल है हिन्दोस्तान में
लाचार बाप की ज्यों बेटी जवान है।
डॉ अजय प्रसून ने हिन्दी के पक्ष में स्वर मुखरित किया-
जिसका शब्द शब्द मधुरिम है जिसमे भाव भाव पूरित है ।
जिसकी लिपि है देवनागरी, उसमें मानवता संचित है ।
यह देवों की मनोकामना मन में आठों प्रहर रहेगी ।
नरेंद्र भूषण की बात पर खूब वाहवाही मिली-
मान करें हर भाषा का,पर /हिन्दी पर अभिमान करें हम।
चर्चा हर भाषा की हो,पर/हिन्दी का गुणगान करें हम।
दिनेश कुशभुवनपुरी ने सशक्त स्वर अपने विचार व्यक्त किए कुछ ऐसे-
दुविधा अब मत पालिए, ये है अपना देश।
हिंदी का गौरव बढ़े, ऐसा करो विशेष॥
उमा शंकर शुक्ल ने हिन्दी के पक्ष में पढ़ा तो श्रोता झूम उठे-
मान हमारा शान हमारी हिन्दी है ।
हमको प्राणों से भी प्यारी हिन्दी है ।।
शोभा दीक्षित भावना ने मन के उद्गार इसप्रकार व्यक्त किए-
नीले अम्बर का व्याकरण इसमें,
संस्कृति का सुवास है हिंदी।।
निवेदिता श्रीवास्तव ने गागर में सागर भरते हुए कहा-
हिन्दी भाषा पूज्य है, करें सदा सम्मान।
हिन्दी माता तुल्य है, दूजी मौसी जान।
संध्या सिंह के दोहे को श्रोताओं ने भरपूर सराहा-
हिंदी में अनुभूतियाँ हिंदी में उद्गार ।
बाकी सब अनुवाद है हिन्दी मूल विचार।
मन मोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने सुनाया -
क्यों मातृ-भाषा’ अपने’ ही’ घर में है उपेक्षित,
हिन्दी बिना है’ देश का’, शृंगार अधूरा।
डॉ मंजु श्रीवास्तव ने हृदय के उद्गार कुछ इसप्रकार व्यक्त किए-
हँसाती है, रुलाती है, मनो को गुदगुदाती है,
हमारी मातृभाषा ये सरस गङ्गा बहाती है।
सुनील त्रिपाठी ने करतल ध्वनि के बीच पढ़ा-
पढ़ें लिखें बोलें हिन्दी हम हिन्दी से जोड़े सबको,
बात करें जब हिन्दी की तो दिल में हिंदुस्तान रहे।
ओम नीरव ने सुनाया -
भारत के जन-मन बसी, सुन्दर सरस सुगम्य।
माँ वाणी की वत्सला, हिंदी परम प्रणम्य।
काव्य पाठ से आयोजन को शिखर तक पहुंचाने वाले अन्य कवियों में मुख्य थे- डॉ उषा सिन्हा धीरज श्रीवास्तव, डॉ अमिता दुबे, डॉ कैलाश नाथ मिश्र, उमा शंकर शुक्ल, पारसनाथ श्रीवास्तव।
साहित्य एक विशद अनुभूति है और वह अनुभूति मानव मन में बसी है.....आइए महसूस करें उस अनुभूति को....😊
शनिवार, 16 सितंबर 2017
पुस्तक मेला लखनऊ में कवितालोक द्वारा 'काव्य-गंगोत्री' का आयोजन
रविवार, 10 सितंबर 2017
'साहित्य सेवा संस्थान' मिल्कीपुर, फैज़ाबाद द्वारा कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह ‘ राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका लखनऊ'
डॉ. लालता प्रसाद पाण्डेय 'साहित्य सेवा संस्थान' मिल्कीपुर, फैज़ाबाद के सौजन्य से एक कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन ‘ राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका लखनऊ' मे वरिष्ठ कवि एवं कवितालोक के संस्थापक आचार्य ओम नीरव जी की अध्यक्षता और उमाकान्त पाण्डेय के संयोजन और संचालन में सम्पन्न हुआ। समारोह में राष्ट्रीय कवि एवं मंचो के प्रसिद्ध सञ्चालक कमलेश मौर्य 'मृदु'मुख्य अतिथि ,प्रमुख अतिथि जबलपुर म.प्र. शासकीय महा विद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीकृष्ण तिवारी और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे जी,प्रसिद्ध मंच सञ्चालक एवं ओज कवि आदरणीय राम किशोर तिवारी जी,ओज कवि आदरणीय केदार नाथ शुक्ल ,डॉ. अशोक अज्ञानी जी,श्री सुनील कुमार बाजपेयी जी ,सुश्री निवेदिता श्रीवास्तव जी,डॉ मंजु श्रीवास्तव जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। समारोह के प्रथम चरण में संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ विमलासन पाण्डेय और कोषाध्यक्ष सुरेन्द कुमार पाण्डेय ने उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंटकर मंचस्थ कवियों को सम्मानित किया। उसके बाद अध्यक्ष आचार्य ओम नीरव और श्री कमलेश मौर्य 'मृदु' जी विशिष्ट अतिथि आ डॉ अमित दुबे जी और केदार नाथ शुक्ल जी द्वारा कुल 22 कवियों को , साहित्य भूषण और काव्य भूषण सम्मान से विभूषित किया।कार्यक्रम में कवि अब्दुल हफ़ीज खाँ की कृति'मेरी कविता मेरी सोच' का लोकार्पण हुआ। सम्मान समारोह एवं कवि सम्मेलन का संचालन संस्था के सचिव /संयोजक उमाकान्त पाण्डेय ने किया।
कवि सम्मेलन का प्रारम्भ ओज कवि केदारनाथ शुक्ल जी की वाणी वन्दना से हुआ।
श्रृंगार की मीठी फुहार छिड़कते हुए कवि संजय साँवरा ने
अधरों से कोई जाम पिलाये तो क्या करें।
पानी ही स्वयं आग लगाये तो क्या करें।
पढा तो पंडाल में श्रृंगार की धारा बहने लगी
कवि अशोक अज्ञानी ने पढ़ा
रास लीला कृष्ण की लिखना बहुत आसान लेकिन,
गोपियों के आसुँओं का मोल कोई क्या लिखेगा।
हास्य कवि सन्दीप अनुरागी ने जब पढा
यतना जादा चोटान छोटे सब खाना पानी भूला है।
भोरहे शीशा मा मुंह देखिस तौ हनोमान कस फूला है।
तो हँसी का फौव्वारा छूट गया।
कवि सम्मेलन की दिशा बदलते हुए बाराबंकी के डॉ शर्मेश शर्मा ने जब देश प्रेम की पंक्तियाँ
न लिक्खेंगे अगर शर्मेश दर्पण बोल उट्ठेगा,
दूध को दूध औ पानी को पानी कौन लिक्खेगा।
तो श्रोता रोमांचित हो उठे।
काव्य मंच को ग़ज़ल की मिठास की ओर मोड़ते हुए मिज़ाज़ लखनवी ने पढा
चला गया भी अगर छोड़के मैं ये दुनिया।
मिज़ाज़ बनके रहूँगा वजूद में सबके।।
हास्य कवि अजय प्रधान ने
चलना ही जिंदगी है मेले ठेले में चलो,
पर रेलों में चलो तो कफ़न बाँध के चलो।
कवि मुकेश मिश्र ने
कहूँगा इसे आज दुर्भाग्य ही जो नहीं देश में सर्व स्वीकार हिंदी।
सुनील बाजपेयी ने पढ़ा-गाँव गया था कुछ दिन पहले, बीबी बच्चों को भी संग ले।
उनको अपना गाँव दिखाने, खुद भी देखा इसी बहाने।
कवि कुमार तरल ने पढ़ा-
जो शीतल चाँदनी बनकर उतर आते हैं धरती पर।
सुबह की रोशनी बनकर बिखर जाते है धरती पर।
कवि हरीश लोहुमी जी ने पढ़ा
विष धर सम हर व्यक्ति है, उर-उर गरल प्रधान।
पुनः कीजिए हे प्रभो!मान सहित विष पान।
मंचो के संचालक आदरणीय राम किशोर तिवारी जी ने वीरगाथा काल भक्ति काल रीतिकाल से लेकर छायावादी युग तक हिंदी पर सवैया छंद पढ़कर सबका मन मोह लिया।
डॉ श्री कृष्ण ने
किससे कहें कि तुम चलो मेरे जुलूस में ,
इन बस्तियों के लोग सब नामर्द हो गये।
ओज कवि आदरणीय केदार नाथ शुक्ल ने
उचित बात भी पक्षपात बस टलने लगती है।
तभी हमारी रुकी लेखनी चलने लगती है।
मुख्य अतिथि श्री कमलेश मौर्य मृदु ने समसामयिक विषय पर कविता पढ़ी कि
हमार मन करे हम बाबा बनि जाई।
अध्यक्ष आचार्य ओम नीरव जी ने सुनाया -
सत्य ने सिर उठाया तनिक जो कहीं,
झूठ की संगठित हो गईं टोलियाँ।
इसके अतिरिक्त कार्यक्रम में
सुश्री निवेदिता श्रीवास्तव,श्री योगेश चौहान, श्री मनीष मगन,श्री बिपिन मलिहाबादी,हास्य कवि श्री चेतराम अज्ञानी,सहित कई कवियों ने काव्य पाठ किया।कार्यक्रम का समापन कार्यकारी अध्यक्ष डॉ विमलासन पाण्डेय के आभार ज्ञापन से हुआ।
सोमवार, 4 सितंबर 2017
लखनऊ में हुआ 'मणिका' पत्रिका का विमोचन एवं साहित्यिक चर्चा
03 सितम्बर 2017
लखनऊ। 'लघु पत्रिकाओं ने हिन्दी साहित्य को वैचारिक दृष्टि से समृद्ध किया है। इस कारण साहित्य इन पत्रिकाओं का ऋणी है।'
यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मण केडिया ने कहीं। श्री केडिया लखनऊ प्रेस क्लब में व्हाट्सअप ग्रुप 'मणिका' द्वारा आयोजित 'सामाजिक जड़ता और समकालीन साहित्य के बीच लघु पत्रिकाओं की भूमिका' विषयक संगोष्ठी और पत्रिका विमोचन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।
संगोष्ठी की शुरुआत करते हुये युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने कहा- 'हिन्दी साहित्य का गंभीर पाठक लघु पत्रिकाओं की ओर ललचाई दृष्टि से देखता है। इन पाठकों की खुराक इन्हें पढ़ने के बाद ही पूरी होती है।'
साहित्यकार बृजेश नीरज ने कई गम्भीर मुद्दे उठाते हुये कहा कि बाजार के खतरों को बाजार के हथियार से ही पराजित किया जा सकता है।
सुलतानपुर के चर्चित युवा साहित्यकार ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' ने कहा- 'लघु पत्रिकायें न उच्च वर्ग की जड़ता को प्रभावित कर सकती हैं न निम्न वर्ग की जड़ता को तोड़ सकती हैं। मध्यवर्ग इनका कार्य क्षेत्र है यहां ये सफल हैं।'
बांदा के आलोचक उमाशंकर परमार ने कहा कि 'हिन्दी साहित्य के अधिकांश बड़े साहित्यकार लघु पत्रिकाओं की उपज हैं।'
इससे पूर्व आरा (बिहार) से आये 'मणिका' के सम्पादक सिद्धार्थ वल्लभ ने आगंतुको का स्वागत करते हुये 'मणिका' के बारे में जानकारी दी। उपस्थित अतिथियों ने जनसरोकारों की पत्रिका मणिका के प्रवेशांक का विमोचन किया।
संचालन मनोज शुक्ल ‘मनोज’ ने तथा अध्यक्षता मधुकर अस्थाना ने की। आभार ज्ञापन गोरखपुर की कवयत्री और मणिका की सह सम्पादक प्रियंका पांडेय ने किया।
समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार कैलाश निगम, मंतव्य के सम्पादक हरेप्रकाश उपाध्याय, निकट की संपादक प्रज्ञा पाण्डेय, प्रद्युम्न कुमार सिंह, प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा, सौरभ श्रीवास्तव, व्यंग्यकार अनूपमणि त्रिपाठी समेत अनेक प्रमुख साहित्यसेवी उपस्थित रहे।
मणिका के संस्थापक सदस्यों में से एक ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' ने पत्रकारों को बताया कि लगभग एक वर्ष पूर्व फेसबुक पर आपस में जुड़े साहित्य के कुछ गंभीर पाठकों ने व्हाट्सअप पर 'मणिका' नाम से एक ग्रुप बनाया। कुल्लू (हिमांचलप्रदेश) के गणेश गनी, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) की प्रियंका पांडेय और आरा (बिहार) के सिद्धार्थ वल्लभ के नेतृत्व में चल रहे इस ग्रुप में धीरे धीरे देश भर के प्रमुख रचनाकार/ आलोचक/ सम्पादक जुड़ गये। सबने मिलकर साहित्य की गंभीरता व वैचारिक प्रतिबद्धता को स्पष्ट रखते हुये जनसरोकारों से जुड़ी एक पत्रिका निकालने का मन बनाया। तीन चार महीने की तैयारी के बाद आज यही 'मणिका-1' के रुप में हमारे सामने है। मणिका के पहले कार्यक्रम के रुप में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से शुरु हुआ विमोचन का यह सिलसिला देश के कई राज्यों के प्रमुख शहरों तक चलेगा।