कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में एक काव्यशाला का आयोजन महोना के चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन में व्यवस्थापक डॉ० सी.के. मिश्र जी के सौजन्य से व संस्थान के संरक्षक श्रीओम नीरव जी के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता कविश्रेष्ठ डॉ अजय प्रसून जी ने की और संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में बिहार से पधारे श्री परमहंस मिश्र 'प्रचंड' जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में शालामऊ, सीतापुर से आये केदार नाथ शुक्ल जी तथा बीबीपुर से आये नारायण दीन जी उपस्थित रहे। काव्यशाला का प्रारम्भ मुकेश मिश्र जी की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ । इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया ।
कार्यक्रम के दौरान कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव जी द्वारा चन्द्र वाटिका शिक्षा संस्थान के मैनेजर डॉ० सी०के० मिश्र जी, बिहार से पधारे परमहंस मिश्र 'प्रचण्ड' जी तथा सीतापुर से आये केदार नाथ शुक्ल जी को उनके साहित्य के उत्थान में योगदान हेतु 'कविता लोक रत्न सम्मान' से सम्मानित किया गया ।
कार्यक्रम के दौरान विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में कक्षा-१० के छात्र सूरज कुमार ने "दोहों/ छंदों में प्रयुक्त होने वाले शब्द 'यति' का अर्थ" अपने सरल शब्दों में पूछा तो कक्षा ९ की छात्रा बुशरा फातिमा ने "एक कविता कम से कम कितनी पंक्तियों में कविता कही जाएगी ?" को मंच के सम्मुख रखा, साथ ही कक्षा १० के ही छात्र अर्पित शर्मा ने "एक कवि द्वारा कविता में लिखे जाने वाले गहरे विचारों को हम कैसे ग्रहण कर सकते हैं ?" पूछकर सभी को आश्चर्य चकित कर दिया । कार्यक्रम में इस माह ओम नीरव जी ने समीक्षा हेतु विपिन मलीहाबादी जी की गीतिका को चुना और उसकी सूक्ष्म से सूक्ष्म दृष्टि से समीक्षा करते हुए उन्होंने गीतिका के गुण व दोषों को इंगित किया तथा दोषों को दूर करने हेतु आवश्यक सुझाव भी दिए ।
इस अवसर पर अजय प्रसून जी ने 'आत्मा के स्वर्ग में खिलता हुआ, आंसुओं के नीर में मिलता हुआ । जिंदगी का सच कभी हारा नहीं, क्यों कि सच है रेत की धारा नहीं ।।'
परम हंस मिश्र 'प्रचण्ड' जी ने- 'दुश्मनी छोड़िये मीत बन जाइये, आप खुद हार कर जीत बन जाइये ।'
केदार नाथ शुक्ल जी ने- 'होकर दुःख से द्रवित शिला जब गलने लगती है, तभी हमारी रुकी लेखनी चलने लगती है ।'
उमाकान्त पांडे जी ने 'जादू बाय संसद भवन बा मा......।'
गौरव पाण्डे ने 'हम अपनों से हैं दूर आज इस कदर, कि जबसे दो पैसे कमाने लगे ।'
नीलम भारती ने ' होठों पर उनका ही तराना होता है, जिनका दिल में ख़ास ठिकाना होता है ।'
मुकेश कुमार मिश्र जी ने ' कभी गोपियाँ संग नाचे स्वयं तो कभी आर्य भू के जनों को नचाया, कराई मही मुक्त भी पापियों से उन्हें नर्क के द्वार भी है पठाया । '
मन्जुल मन्ज़र लखनवी जी ने ' तुझको खुद ही हिला के रख देगी, जिंदगी को मिटा के रख देगी । ताब अच्छी नहीं मुहब्बत में, सारे रिश्ते जला के रख देगी ।।'
मिजाज लखनवी जी ने 'क्या से क्या हो गया तेरे लिए, दर-ब-दर मैं हो गया तेरे लिए ।'
विपिन मलीहाबादी ने 'गीतिका भी बनी अब गजल की बहन, है ठिकाना मिला अब मिला है गगन ।'
सम्पत्ति कुमार मिश्र 'भ्रमर बैसवारी' जी ने 'जिनकी त्रिलोक में है छाई महिमा अपार, ग्यानी महाज्ञानी कोई पार नही पाता है ।'
शराफत बिसवानी जी ने 'क्या मजा मिला उन को दिल मेरा जलाने में , जान मेरी हाजिर थी जिन के मुस्काने में ।'
शिखर अवस्थी जी ने 'लेकर कलम हाथ में अपनी भारत माँ का गान लिखो । जब भी लिखना पड़े देश तो अपना हिंदुस्तान लिखो ।।'
राम राय राणा जी ने 'पाक मेरे मित्र पाक-पाक सब काम कर । पाक नाम होने से तू पाक न कहायेगा ।।'
मनोज शुक्ल 'मनुज' जी ने 'वक़्त का चेहरा घिनौना हो गया, आदमी अब कितना बौना हो गया । सभ्यता का जो दुपट्टा था कभी, आज वैश्या का बिछौना हो गया ।।'
राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने ' मेरी पलकों के साये में, ख़्वाब सजाकर तुम पलते हो । बिना तुम्हारे रह न सकूँगा, यदि कहते हो, सच कहते हो ।।' पढ़कर खूब तालियां व वाह-वाही बटोरी ।
संयोजक-राहुल द्विवेदी 'स्मित', इटौंजा लखनऊ
साहित्य एक विशद अनुभूति है और वह अनुभूति मानव मन में बसी है.....आइए महसूस करें उस अनुभूति को....😊
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