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पाले-पोसे गए एक आंगन में हम आज लगता है रस्मन अलग हो गए।
बोली हिन्दी से उर्दू ए आपा मेरी कैसे मज़बूत बन्धन अलग हो गए॥
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हिन्दी कहने लगी कितनी भोली है तू क्युं रिवाजों से दुनिया के अंजान है।
हाथ चकबस्त के तेरे सर पर रहा मेरे सर पर भी साया-ए-रसख़ान है॥
फ़िर भी हिन्दू हुं मैं तू मुस्लमान है साज़िशें वो हुईं मन अलग हो गए....
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अम्न के भी कबूतर का वध कर के जो मुस्कराते रहे ये वही लोग हैं।
आस्थाओं पे मीरा की उंगली यहां जो उठाते रहे ये वही लोग हैं॥
ये वही लोग हैं जिनकी शय पर यहां मन अलग हो गए तन अलग हो गए.....
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तेरे पांवों में कांटा अगर चुभ गया सूर-तुलसी की आंखें भजन हो गईं।
मेरी आंखों में आंसू अगर आ गए आंख ख़ुसरू की गंगो-जमन हो गईं॥
आज हम दोनों अंधों का धन हो गईं सबकी आंखों से सावन अलग हो गए...
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तेरे बालों में मोती पिरोऊं बहन मेरी ज़ुल्फ़ों को तू भी संवारे कभी।
है मनोकामना तेरा सजदा करूं आरती मेरी तू भी उतारे कभी॥
क्या करें हम थे जिनके दुलारे कभी आज उनके भी आंगन अलग हो गए...
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बात तब थी कि ये भी बताता कोई क्या तेरी रस्म है क्या मेरी रीत है।
छंद ही है बहर और बहर छंद है गीत ही है ग़ज़ल हर ग़ज़ल गीत है॥
तुझसे मुझसे किसी को कहां प्रीत है साधना , शब्द,साधन आलग हो गए...
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मासूम ग़ज़ियाबादी
ग़ाज़ियाबाद
उत्तर प्रदेश
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